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नेहा सिंह राठौर विवाद: अभिव्यक्ति की आड़ में राष्ट्र विरोध का सच

पहलगाम घटना के पश्चात भारत आज केवल बाहरी खतरों से नहीं, बल्कि आंतरिक वैचारिक विषाक्तता से भी जूझ रहा है.

नेहा सिंह राठौर विवाद के पश्चात यह प्रश्न उठ रहा है-

-क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर राष्ट्र की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले कृत्य बढ़ते जा रहे हैं।

-सस्ती लोकप्रियता की लालसा में, कुछ राजनेता और तथाकथित कलाकार देश विरोधी शक्तियों के मोहरे बनते दिख रहे हैं।

-नेहा सिंह राठौर का हालिया प्रकरण इसका जीवंत उदाहरण है.


अभिव्यक्ति या राष्ट्रविरोध?

नेहा ने हाल ही में पहलगाम आतंकी हमले के बाद सोशल मीडिया पर एक विवादित पोस्ट साझा की थी।

इसमें कथिततौर पर भारतीय सेना और सरकार की आलोचना की गई थी।

यद्यपि आलोचना करना लोकतंत्र का एक स्वाभाविक पहलू है.

किंतु जब यह देशद्रोह की सीमा में प्रवेश होता है, तो यह गंभीर चिंता का विषय बन जाता है।

सबसे चिंताजनक बात यह है कि नेहा राठौर की इस पोस्ट को पाकिस्तान के मीडिया हाउसों ने प्रमुखता से उठाया।

पाकिस्तानी चैनलों ने इस पोस्ट के जरिये दुनिया भर में भारत की छवि धूमिल करने के प्रयास किए।

यह दर्शाता है कि अनजाने में ही सही किन्तु नेहा का यह कृत्य शत्रुराष्ट्र हेतु भारत विरोधी हथियार बन गया


विपक्षी नेताओं का ‘पाकिस्तान प्रेम’

नेहा सिंह राठौर विवाद के बाद विपक्षी नेताओं का रुख भी चौंकाने वाला रहा है।

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नेहा का समर्थन करते हुए “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” की दुहाई दी।

परंतु क्या सच में राष्ट्र को नीचा दिखाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है?

यही नहीं, हाल ही में एक राजद नेता का एक वीडियो वायरल हुआ.

जिसमें कथिततौर पर वे “पाकिस्तान जिंदाबाद” के नारे लगाते हुए देखे गए।

यह न केवल भारत के कानूनों के खिलाफ है, बल्कि जनभावनाओं के साथ घोर विश्वासघात भी है।

अफसोस की बात है कि इस तरह की घटनाओं पर विपक्ष उनका मौन समर्थन करता है।


वोटबैंक की राजनीति और तुष्टिकरण

भारत की राजनीति में एक विकृत प्रवृत्ति गहराती जा रही है — तुष्टिकरण की राजनीति


अल्पसंख्यक वोटबैंक को रिझाने के लिए कई नेता राष्ट्रहित की बलि चढ़ाने से भी नहीं हिचकते।


नेहा सिंह राठौर का समर्थन इसी रणनीति का एक उदाहरण है.

— जहाँ राष्ट्रवाद को कुचलकर तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया जाता है।

कर्नाटक का कलबुर्गी प्रकरण इस बात को और पुख्ता करता है.

जहाँ कुछ महिलाओं को सड़क से पाकिस्तान का झंडा उठाते हुए देखा गया।

इस घटना पर कर्नाटक सरकार का ढुलमुल और पक्षपाती रवैया वोटबैंक की राजनीति का जीताजागता उदाहरण है।

यह घटना सोशल मीडिया पर भारी आक्रोश का विषय बनी।

हालाँकि सिध्दा रमैया सरकार ने इसे एक सामान्य घटना बताकर टालने की कोशिश की।


अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: अधिकार या हथियार?

भारतीय संविधान ने हर नागरिक को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार दिया है।
परंतु यह स्वतंत्रता निरंकुश नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 19(2) के अंतर्गत कुछ उचित प्रतिबंध लगाए गए हैं।

जब कोई व्यक्ति या समूह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में देश की गरिमा का अपमान करता है, तो वह संविधान के मूलभाव को विकृत कर रहा होता है।

पाकिस्तान प्रेम: एक गहरी बीमारी

पाकिस्तान आज भी भारत में अस्थिरता फैलाने का कोई भी अवसर नहीं छोड़ता।
जब देश के भीतर से ही कुछ लोग उसके दुष्प्रचार को बल देते हैं, तो यह कहीं अधिक घातक सिद्ध होता है।

नेहा राठौर की पोस्ट। विपक्षी नेताओं के पाकिस्तान जिंदाबाद वाले नारों पर चुप्पी। और कर्नाटक की घटनाओं से यह स्पष्ट है कि भारत में पाकिस्तान प्रेम अब केवल सीमित तत्वों की सोच नहीं रहा। बल्कि इसे राजनीतिक स्वार्थों के लिए खुलेआम बढ़ावा दिया जा रहा है।


व्यापक प्रभाव और खतरे

  1. राष्ट्रीय एकता को खतरा: जब देश के भीतर से ही राष्ट्रविरोधी मानसिकता को खाद-पानी मिलेगा, तो राष्ट्रीय अखंडता पर आघात होगा।
  2. अंतरराष्ट्रीय छवि धूमिल: पाकिस्तान जैसे राष्ट्र भारत के आंतरिक विरोधों का प्रचार कर वैश्विक मंचों पर भारत को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं।
  3. युवा पीढ़ी में भ्रम: सोशल मीडिया के व्यापक प्रभाव के कारण युवा पीढ़ी राष्ट्रविरोध और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के बीच की महीन रेखा को समझने में भ्रमित हो सकती है।
  4. राजनीतिक विघटन: तुष्टिकरण की राजनीति देश के दीर्घकालिक हितों के विरुद्ध जाकर समाज में विभाजन को गहरा कर सकती है।

सशक्त भारत के लिए सजग नागरिकता आवश्यक

आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राष्ट्रहित के बीच संतुलन को समझें।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि देश की गरिमा और सुरक्षा से खिलवाड़ किया जाए।
नेहा राठौर जैसे उदाहरण हमें आगाह करते हैं कि देश के भीतर मौजूद राष्ट्रविरोधी मानसिकता को केवल कानून से नहीं। बल्कि जन-जागरण और राष्ट्रीय चेतना से परास्त करना होगा।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वही है जो देश को मजबूत बनाए, उसकी छवि को गौरवशाली बनाए — न कि दुश्मनों के हाथों में हथियार थमा दे।
भारत का भविष्य हम सबकी सजगता पर निर्भर है।

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