22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए भीषण आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। लश्कर-ए-तैयबा से संबद्ध ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ द्वारा किए गए इस हमले में दर्जनों बेगुनाह पर्यटकों की हत्या हुई। इस घटना ने न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की नींव को चुनौती दी, बल्कि भारत-पाक संबंधों में फिर एक बार कटुता और युद्ध की संभावनाओं को जन्म दिया। इस ब्लॉग में हम उसी संवेदनशील परिप्रेक्ष्य का तथ्यात्मक और संतुलित मूल्यांकन करेंगे।
पहलगाम हमला: एक दृष्टि
इस आतंकी हमले को जिस तरह से अंजाम दिया गया, वह न केवल निर्दयता की पराकाष्ठा थी, बल्कि यह स्पष्ट रूप से भारत की शांति प्रक्रिया पर प्रहार भी था। हमले की टाइमिंग, लक्ष्य और रणनीति को देखते हुए यह एक ‘state-sponsored terrorism’ का मामला प्रतीत होता है। भारत ने इसे पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित हमला करार दिया है।
पहलगाम हत्याकांड 2025: एक चुटकी सिन्दूर की कीमत…..
भारत की प्रारंभिक प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के उच्चायुक्त को तलब कर कड़ा विरोध दर्ज
सिंधु जल संधि की समीक्षा और आंशिक निलंबन की घोषणा
नियंत्रण रेखा पर सैन्य सक्रियता में तीव्रता
विदेश नीति में ‘No First Talk’ का नया रुख
जनमानस की प्रतिक्रिया: आक्रोश बनाम उत्तरदायित्व
देश भर में इस हमले के बाद आक्रोश की लहर फैल गई है। आम नागरिकों से लेकर पूर्व सैनिकों, बुद्धिजीवियों और युवाओं तक—हर वर्ग से पाकिस्तान के विरुद्ध कठोर कदम उठाने की माँग उठी है। सोशल मीडिया पर “#RevengeForPahalgam” जैसे ट्रेंड्स, विरोध प्रदर्शन, और बहिष्कार आह्वानों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जनता अब केवल कड़े बयान नहीं, निर्णायक कार्रवाई चाहती है।
हालांकि, सरकार पर दबाव अत्यधिक है, फिर भी रणनीतिक समझ यह कहती है कि हर प्रतिशोध विवेकपूर्ण योजना के साथ ही सार्थक हो सकता है। युद्ध केवल आक्रोश की उपज नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में संतुलित निर्णय का परिणाम होना चाहिए।
युद्ध की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर पहले ही तीन युद्ध (1947-48, 1965 और 1999 – कारगिल) हो चुके हैं। कारगिल युद्ध, जो सीमित समय का संघर्ष था, परमाणु हथियारों की उपस्थिति में लड़ा गया, जिसने विश्व समुदाय को भी चिंतित कर दिया था। इसके अतिरिक्त, 2016 (उरी) और 2019 (पुलवामा) के बाद भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे सीमित सैन्य विकल्प चुने।
सैन्य संतुलन और रणनीतिक तैयारी
भारत की सैन्य क्षमताएं, जनशक्ति और तकनीकी आधार पर पाकिस्तान से कहीं अधिक हैं। वैश्विक सैन्य रैंकिंग (Global Firepower Index 2024) में भारत 4वें स्थान पर है जबकि पाकिस्तान 9वें स्थान पर। परंतु पाकिस्तान की रणनीति हमेशा ‘asymmetric warfare’ और ‘nuclear deterrence’ पर आधारित रही है। ऐसे में किसी भी युद्ध की स्थिति में पारंपरिक जीत आसान नहीं है।
परमाणु खतरा और अंतरराष्ट्रीय भूमिका
दोनों देशों के पास परमाणु हथियार हैं। किसी भी प्रकार की गलतफहमी या उग्र निर्णय ‘nuclear flashpoint’ में बदल सकता है। इस स्थिति में अमेरिका, चीन और रूस की भूमिकाएँ विशेष ध्यान देने योग्य हैं:
अमेरिका: भारत के साथ सामरिक साझेदार होते हुए भी, अमेरिका युद्ध की स्थिति में तनाव कम करने का प्रयास करेगा। वह भारत को सटीक और सीमित प्रतिक्रिया के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। साथ ही पाकिस्तान को दबाव में रखने हेतु F-16 सहायता रोकने जैसे कदम उठा सकता है।
चीन: चीन, जो पाकिस्तान का पुराना सहयोगी है, संघर्ष की स्थिति में भारत को सीमित करने की कोशिश कर सकता है। हालांकि वह युद्ध में सीधे हस्तक्षेप नहीं करेगा, परंतु लद्दाख सीमा पर दबाव बढ़ाना, कूटनीतिक बयानबाजी और वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान का समर्थन कर सकता है।
रूस: रूस की भूमिका सबसे जटिल है। पारंपरिक रूप से भारत का सहयोगी होते हुए भी, रूस ने हाल के वर्षों में पाकिस्तान से भी सैन्य समझौते किए हैं। हालांकि युद्ध की स्थिति में रूस भारत से गहराई से सहमत रहेगा, लेकिन सार्वजनिक रूप से वह तटस्थ रुख अपना सकता है।
इस प्रकार, युद्ध की स्थिति केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि बहुपक्षीय कूटनीतिक समीकरणों का खेल बन जाएगा।
पाकिस्तान की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान ने हमले में अपनी भूमिका से इनकार किया है और इसे ‘भारतीय अंदरूनी मामला’ बताया है। इसके बावजूद वहां की सेना और ISI की गतिविधियां, भारत विरोधी संगठनों को समर्थन देना और नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी जैसे तथ्य पाकिस्तान की स्थिति को संदिग्ध बनाते हैं।
युद्ध या कूटनीति?
हालांकि भारत के जनमानस में इस समय रोष और युद्ध की मांग तीव्र है, लेकिन एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में भारत को कूटनीतिक और सामरिक दोनों स्तरों पर विवेकपूर्ण नीति अपनानी होगी। युद्ध एक आखिरी विकल्प होना चाहिए, न कि प्रतिक्रिया का पहला कदम। जैसा कि पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा था
– “कूटनीति तब तक असफल नहीं होती, जब तक युद्ध शुरू न हो जाए।”
भारत को आतंकवाद के विरुद्ध वैश्विक समर्थन और रणनीतिक गठबंधन मजबूत करने की आवश्यकता है, जिससे पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग किया जा सके। साथ ही, देश के भीतर:
- आंतरिक सुरक्षा में सुधार
- खुफिया तंत्र की दक्षता
- डिजिटल और साइबर फ्रंट पर सतर्कता
- सूचना युद्ध (Information Warfare) में तैयारी
- नागरिक जागरूकता व एकजुटता
जैसे पहलुओं पर गंभीरता से कार्य करना होगा।
हमारी राय
पहलगाम नरसंहार हमारे राष्ट्रीय अस्तित्व पर हमला है। इस चुनौती का उत्तर हमें केवल प्रतिशोध से नहीं, बल्कि ठोस रणनीति, आंतरिक एकता, और वैश्विक मंचों पर सक्रियता से देना होगा। भारत को सतर्कता, संकल्प और संयम का परिचय देना होगा—ताकि देश सुरक्षित रहे और भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्थायी शांति का मार्ग प्रशस्त हो सके।

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