भगदड़ में हुई मौतों का जिम्मेदार कौन और क्यों

नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी 2025 की शाम एक दुखद भगदड़ हुई, जिसमें कम से कम 18 लोगों की मृत्यु हो गई, जिनमें एक 7 वर्षीय बच्चा भी शामिल है, और दर्जनों लोग घायल हो गए। यह घटना उस समय हुई जब हजारों यात्री प्रयागराज में आयोजित धार्मिक महाकुंभ मेले के लिए ट्रेनों में सवार होने के लिए स्टेशन पर एकत्रित थे। प्लेटफॉर्म परिवर्तन की घोषणा के बाद, यात्रियों में भ्रम की स्थिति पैदा हो गई, जिससे पुल से उतरते समय लोग फिसलकर गिर पड़े और भगदड़ मच गई।

महाकुंभ के दौरान भगदड़: दोषी कौन और क्यों?

महाकुंभ मेला, जो हर 12 वर्षों में आयोजित होता है, विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन है। करोड़ों श्रद्धालु इस पवित्र स्नान के लिए इकट्ठा होते हैं, जिससे सुरक्षा और प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो जाती है। लेकिन कई बार, यह धार्मिक समागम अव्यवस्था और त्रासदी में बदल जाता है, जब भीड़ अनियंत्रित होकर भगदड़ में तब्दील हो जाती है। सवाल यह उठता है कि इस तरह की भगदड़ के लिए दोषी कौन है और इसके पीछे क्या कारण हैं?

भगदड़ के प्रमुख कारण

इतनी विशाल भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस और प्रशासन को सुव्यवस्थित योजना बनानी होती है। परंतु कटु सत्य यह है कि प्रशासन द्वारा सही समय पर उचित फैसले न लिए जाने के कारण स्थिति बेकाबू हो गई।

अफवाहें लोगों में घबराहट पैदा कर देती हैं और वे अनियंत्रित रूप से दौड़ पड़ते हैं। दुःखद है कि चंद शरारती तत्वों के द्वारा इस प्रकार की अफवाहों को इतनी तेज़ी से फैलाया जाता है कि एक आम इंसान को उसकी सच्चाई पता करने का समय ही नहीं मिल पाता है. विडंबना ही है कि आज AI जैसी बेहद उन्नत तकनीकों के बावजूद हम इन शरारती तत्वों पर नियन्त्रण नहीं कर पाते हैं.

दोष किसका?

प्रशासन और पुलिस

अगर भीड़ नियंत्रण के पर्याप्त उपाय नहीं किए गए, मार्गों की उचित व्यवस्था नहीं हुई, और सुरक्षा बल सतर्क नहीं रहे, तो यह प्रशासन की विफलता मानी जाएगी।

श्रद्धालु स्वयं भी जिम्मेदार हैं

कई बार लोग धैर्य खो देते हैं, धक्का-मुक्की करते हैं, और भगदड़ का कारण बनते हैं। धार्मिक उत्साह में उपस्थित श्रद्धालुओं द्वारा अनुशासन भूलना भी दुर्घटनाओं की एक बड़ी वजह है।

सरकार और नीतियाँ

यदि पहले से ही भीड़ नियंत्रण और आपदा प्रबंधन के लिए उचित नीतियाँ नहीं बनाई गईं, तो सत्ता पक्ष की जवाबदेही बनती ही है।

समाधान क्या हो सकता है?

आधुनिक तकनीकों का उपयोग: ड्रोन कैमरों और AI तकनीकों से भीड़ की निगरानी और नियंत्रण किया जा सकता है।

प्रशिक्षित सुरक्षा बल: कुंभ मेले के दौरान विशेष रूप से प्रशिक्षित बलों की तैनाती आवश्यक है।

जन जागरूकता: श्रद्धालुओं को भीड़ प्रबंधन और सुरक्षित आचरण की जानकारी दी जानी चाहिए।

सुव्यवस्थित बुनियादी ढांचा: पुलों, सड़कों, और घाटों को मजबूत और भीड़ नियंत्रण के अनुकूल बनाया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

भगदड़ सिर्फ एक दुर्घटना नहीं, बल्कि कई कारकों का परिणाम होती है। इसका मुख्य कारण प्रशासनिक लापरवाही, अव्यवस्थित भीड़ प्रबंधन और अव्यवस्थित बुनियादी ढांचा होता है। इस समस्या से बचने के लिए सभी पक्षों—सरकार, प्रशासन, आयोजन समिति, और श्रद्धालुओं—को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे, ताकि कोई भी पवित्र आयोजन किसी त्रासदी में न बदले।

सत्ता और विपक्ष धर्म को अफीम की तरह……

जर्मनी के महान दार्शनिक और चिंतक कार्ल मार्क्स ने धर्म को लेकर कहा था – “Religion is the opium of the people”. अर्थात धर्म लोगों के लिए अफ़ीम है।

दूसरे शब्दों में कहें तो कार्ल मार्क्स का यह मानना था कि धर्म एक आम इंसान के लिए वास्तव में अफ़ीम का काम करता है।

हालांकि मैं स्वयं मार्क्सवादी विचारधारा से पूर्णतः सहमत कभी नहीं हुआ, और शायद कभी हो भी नहीं सकता। परंतु भारत की आधुनिक राजनीति के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए, तो वास्तव में धर्म को अफ़ीम की तरह ही इस्तेमाल किया जा रहा है।

दरअसल अफ़ीम की एक ख़ास बात यह होती है कि अफ़ीम का नशा करने के पश्चात व्यक्ति को अपने दर्द का एहसास बहुत कम होता है।
ठीक इसी प्रकार, एक साधारण और आम इंसान को धर्म का नशा जब चढ़ता है तो वह अपने वास्तविक दुःख -दर्द को कुछ समय के लिए भूल जाता है।

आज स्थिति कमोवेश ठीक ऐसी ही है। भारत की आम जनता महंगाई, बेरोजगारी, काला बाजारी, और भ्रष्टाचार के दर्द को धर्म के नशे में भुला बैठी है।

नित्य नए – नए करों (Tax) के बोझ के नीचे दबकर कराह रही आम जनता पर जब GST का चाबुक पड़ता है, तो उसकी उस पीड़ा को, उसके दर्द को धर्म की अफ़ीम सुंघाकर कम करने का हर संभव प्रयास किया जाता है।

ऐसा नहीं है कि केवल सत्ता पक्ष या एक पार्टी विशेष ही धर्म की अफ़ीम के इंजेक्शन लगा रही है, अपितु विपक्ष भी अपने दोनों हाथों में तुष्टिकरण और धर्म विशेष के इंजेक्शन लिए लोगों की भावनाओं से खेलता नज़र आ रहा है।

भारतीय समाज की मनोदशा की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि यहां पर “नियतिवाद” अर्थात भाग्यवाद को प्रधानता दी जाती है। अर्थात जो कुछ भी हो रहा है, वह तो पहले से ही निर्धारित है।

ग़रीब, कमज़ोर और लाचार इंसान अपनी पूरी ज़िन्दगी का दर्द केवल इन शब्दों के “मरहम” से ही मिटाता रहता है, कि उसके भाग्य में यही लिखा था।

यहां उल्लेखनीय है कि भारतीय दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण दर्शन और हिन्दू सनातन आस्था का प्रतीक पवित्र भगवद्गीता इसके ठीक विपरीत संदेश देती है।

भगवद्गीता का दर्शन कर्म को प्रधान मानता है, न कि भाग्य अथवा नियति को प्रधान मानता है।

परंतु भारतीय जनमानस को धर्म की जिस अफ़ीम के सहारे छोड़ दिया गया है, वह उसे केवल और केवल मंदिर/मस्जिद/गुरुद्वारा/चर्च आदि में ही उलझाकर रखे हुए है।

किसी को भी अपने भविष्य की चिंता नहीं है, अपितु गड़े हुए मुर्दों को देखने को प्रत्येक व्यक्ति आतुर नज़र आता है।

मनोज चतुर्वेदी शास्त्री
समाचार – संपादक
उगता भारत
नोएडा से प्रकाशित
हिंदी समाचार पत्र

भारत में मांसाहार पर पूर्णतया प्रतिबंधित शहर

भारत के गुजरात के भावनगर जिले में स्थित एक छोटे से शहर पालीताना में मांसाहारी भोजन पर पूर्णतया बैन लगा दिया गया है. उल्लेखनीय है कि पालीताना एक लोकप्रिय जैन तीर्थ स्थल है. यहां कि पूर्ण शाकाहारी जैन समाज की कोशिशों के चलते यह एतिहासिक कार्य सम्पन्न हो पाया है. दयालु नागरिक मानवसेवा ट्रस्ट पालीताना शहर की तमाम शाकाहारी जनता को इस महान परम्परा के श्रीगणेश हेतु हार्दिक बधाई देता है.