World Affairs & Diplomacy

world diplomacy : From diplomatic maneuvers to global power shifts, this section explores how international events impact nations, identities, and futures. Here, we go beyond headlines to decode the hidden patterns in global politics, war strategies, treaties, and foreign policy debates.

Exterior view of a Turkish Imam Hatip school building with bold headline about Islamic radicalism

तुर्की के इमाम हातिप स्कूल्स : जानिए कट्टरपंथी पाठशाला का खौफ़नाक सच

“तुर्की के इमाम हातिप स्कूल्स”—यह शब्द अब केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं रहा। यह एक ऐसा वैचारिक औज़ार बन चुका है, जिसके माध्यम से तुर्की सरकार, विशेषकर राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन की इस्लामी राष्ट्रवादी नीतियाँ, वैश्विक इस्लामी पुनर्जागरण के नाम पर कट्टरता का प्रसार कर रही हैं। ये स्कूल धर्म की आड़ में लोकतंत्र, […]

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Mahatma Gandhi's double standards on Pakistan and Israel – symbolic background with flags and serious tone

महात्मा गाँधी का पाकिस्तान और इज़रायल पर दोहरा मापदंड क्यों था?

महात्मा गाँधी का पाकिस्तान और इज़रायल पर दोहरा मापदंड क्यों था? यह प्रश्न न केवल ऐतिहासिक विमर्श में, बल्कि आधुनिक कूटनीति और वैचारिक बहस में भी अत्यंत प्रासंगिक है। महात्मा गाँधी, जो विश्वपटल पर अहिंसा और नैतिक राजनीति के प्रतीक माने जाते हैं, उनके विचारों में यदि कोई वैचारिक असंगति दिखाई दे, तो वह केवल

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Islamic Military IMCTC Feature Image – A New Threat to Non-Muslim Nations?

इस्लामिक सेना IMCTC : कहीं भारत जैसे राष्ट्रों के लिए नया ख़तरा तो नहीं ?

दुनिया भर में जब भी आतंकवाद की बात होती है, अक्सर चर्चा के केंद्र में इस्लामिक कट्टरपंथ आ खड़ा होता है। इसी पृष्ठभूमि में 2015 में जब सऊदी अरब ने इस्लामिक सेना IMCTC (इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज़्म कोएलिशन) की घोषणा की, तो यह कदम superficially आतंकवाद के खिलाफ एक ऐतिहासिक पहल जैसा प्रतीत हुआ। लेकिन

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रूस-चीन-ईरान गठजोड़

रूस-चीन-ईरान गठबंधन भारत के लिए ख़तरे की घंटी क्यों है ?

इस लेख में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि रूस-चीन-ईरान गठबंधन भारत के लिए ख़तरे की घंटी क्यों है ? विश्व राजनीति एक बार फिर ध्रुवीकरण की ओर बढ़ रही है। जहाँ अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्र एक ओर हैं, वहीं रूस, चीन और ईरान का नया त्रिकोणीय गठबंधन उभरकर सामने आ रहा है। यह

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इज़रायल के ये अहसान भारत कैसे भूल सकता है?

इज़रायल के ये अहसान भारत कैसे भूल सकता है ?

इज़रायल के ये अहसान भारत कैसे भूल सकता है. भारतीय इतिहास के तीन सबसे निर्णायक और अस्तित्वपरक युद्ध—1965, 1971 और कारगिल युद्ध के पीछे कई ऐसे छिपे हुए सहयोगी रहे, जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से मंच पर न रहते हुए भी, पर्दे के पीछे से निर्णायक भूमिका निभाई। इनमें से एक सबसे महत्वपूर्ण और लगभग अनदेखा

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कांग्रेस नेतृत्व सरकारों की इज़रायल से दूरी का एक कड़वा सच

कांग्रेस नेतृत्व सरकारों की इज़रायल से दूरी का एक कड़वा सच

जवाहर लाल नेहरु से लेकर मनमोहन सिंह तक, कांग्रेस नेतृत्व सरकारों की इज़रायल से दूरी का कडवा सच क्या है? आइये इसको समझते हैं. भारत और इज़रायल—दो स्वतंत्र लोकतांत्रिक राष्ट्र—1947-48 में लगभग एक ही समय पर अस्तित्व में आए। एक नेहरू के नेतृत्व में गुटनिरपेक्षता की ओर चला, जबकि दूसरा पश्चिम समर्थित राष्ट्र बनकर उभरा।

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कट्टरपंथ और आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत का सच्चा दोस्त है इज़रायल

कट्टरपंथ और आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत की ढाल है इज़रायल

कट्टरपंथ और आतंकवाद के ख़िलाफ़ भारत का हमेशा से सच्चा दोस्त रहा है इज़रायल. इस लेख में हम विस्तार से देखेंगे कि कैसे भारत और इज़रायल की मित्रता सिर्फ रणनीतिक नहीं, बल्कि वैचारिक भी है। इज़रायल ने भारत के खिलाफ इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद के विरुद्ध हमेशा एक स्पष्ट, दृढ़ और निर्णायक रुख अपनाया है

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वामपंथी और चरमपंथी विचारधारा

वामपंथी और चरमपंथी विचारधारा से जूझते भारत का भविष्य क्या है?

वामपंथी और चरमपंथी विचारधारा से जूझते भारत का भविष्य क्या है — यह केवल एक लेख का शीर्षक नहीं, बल्कि एक जीवंत यथार्थ है जिसके बीच भारत आज खड़ा है। भारत, जिसकी आत्मा हजारों वर्षों की सभ्यता, दर्शन और विविधता में निहित है, आज एक अदृश्य युद्ध का सामना कर रहा है। यह युद्ध सीमा

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मोदी जी अगर बातचीत से ही सब मसले सुलझते तो महाभारत क्यों होती ?

अगर बातचीत से सब मसले सुलझते तो महाभारत क्यों होती?” यह प्रश्न आज के राजनीतिक और वैश्विक संदर्भों में एक ज्वलंत विचार है। यह न केवल एक ऐतिहासिक दृष्टांत की ओर इशारा करता है, बल्कि यह उस दर्शन की भी पड़ताल करता है, जिसमें संवाद, शांति, और नैतिकता बनाम सत्ता, सैन्य शक्ति और रणनीतिक राष्ट्रवाद

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