अमेरिका का दोगला व्यवहार: पाकिस्तान को दुलार, ईरान को दुत्कार क्यों?

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अमेरिका का दोगला व्यवहार क्या है, आइये इसे समझते हैं.

ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर वैश्विक चिंता दिनोंदिन गहराती जा रही है,

जबकि पाकिस्तान, जो दशकों से परमाणु शक्ति सम्पन्न है और आतंकवाद से सीधा जुड़ा है,

अपेक्षाकृत अंतरराष्ट्रीय आलोचना से बचा हुआ है। क्या यह विरोधाभास नहीं है?

क्या ईरान ही परमाणु खतरा है, या पाकिस्तान उससे भी बड़ा और तत्काल खतरा बन चुका है?

आइए इस विषय की तह तक जाएँ।

ईरान और इज़रायल युद्ध : भारत की रणनीति क्या होनी चाहिए?


1. पाकिस्तान पहले से परमाणु शक्ति है, ईरान बनने की प्रक्रिया में

  • पाकिस्तान ने 1998 में परमाणु परीक्षण कर दुनिया को अपने हथियार दिखा दिए थे।
  • उसकी परमाणु नीति स्थापित और स्पष्ट है।
  • ईरान अभी ‘threshold’ पर है — यानी हथियार बनाने के बेहद करीब.
  • लेकिन अभी तक किसी परमाणु परीक्षण का सार्वजनिक प्रमाण नहीं।
  • जब कोई नया देश परमाणु शक्ति बनने की दहलीज़ पर होता है, तब वैश्विक प्रतिक्रिया तीव्र होती है।

2. अमेरिका और पश्चिम का रणनीतिक पाखंड

  • पाकिस्तान दशकों तक अमेरिका का सहयोगी रहा — अफगानिस्तान युद्ध और ‘War on Terror’ में।
  • ईरान 1979 की क्रांति के बाद से अमेरिका-विरोधी रहा है।
  • वहां की सत्ता अमेरिकी साम्राज्यवाद के विरोध को वैचारिक आधार मानती है।
  • यही कारण है कि अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खतरे के रूप में पेश करता है.
  • लेकिन पाकिस्तान को ‘नियंत्रित परमाणु शक्ति’ मानता है।

3. इज़रायल की सुरक्षा चिंताएँ और ईरान का दृष्टिकोण

  • इज़रायल, ईरान को एक अस्तित्वगत खतरे के रूप में देखता है।
  • ईरान के नेता इज़रायल को ‘नक्शे से मिटा देने’ की धमकी दे चुके हैं।
  • ईरान हमास, हिज़्बुल्लाह जैसे संगठनों को प्रत्यक्ष समर्थन देता है, जो इज़रायल के खिलाफ सक्रिय हैं।
  • पाकिस्तान से इज़रायल की कोई प्रत्यक्ष शत्रुता या सीमा नहीं जुड़ी हुई है, इसलिए उसका फोकस ईरान पर है।

4. भारत की दृष्टि से परमाणु खतरा कौन?

  • भारत के लिए पाकिस्तान ही प्रमुख परमाणु खतरा है।
  • उसका ‘First Use’ की धमकी, सीमापार आतंकवाद और अस्थिर लोकतंत्र भारत के लिए खतरा हैं।
  • ईरान से भारत के संबंध कूटनीतिक रूप से संतुलित हैं।
  • भारत चाबहार बंदरगाह, ऊर्जा सहयोग और अफगान नीति में ईरान के साथ समन्वय रखता है।

5. परमाणु हथियारों की सुरक्षा: कौन ज़्यादा अस्थिर?

  • पाकिस्तान में कट्टरपंथी तत्वों की सेना और सुरक्षा ढाँचे में घुसपैठ की आशंका है।
  • ‘डॉक्टर ए क्यू खान नेटवर्क’ ने परमाणु तकनीक की कालाबाज़ारी कर वैश्विक अस्थिरता फैलाई।
  • ईरान का कार्यक्रम अभी तक घरेलू सीमाओं तक केंद्रित है और अंतरराष्ट्रीय निगरानी में है (IAEA)।

6. अंतरराष्ट्रीय मीडिया और राजनीतिक एजेंडा

  • पश्चिमी मीडिया ईरान के खिलाफ युद्धोन्मुख नैरेटिव बनाता है, ‘आयातित खतरे’ की अवधारणा के तहत।
  • पाकिस्तान को मीडिया में एक ‘स्टेबल डेमोक्रेसी विद न्यूक्लियर डिटरेंस’ के रूप में चित्रित किया जाता है.
  • जबकि जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल उलट है।

7. भारत की परमाणु नीति: संयम और प्रतिरोध की रणनीति

  • भारत की ‘No First Use’ (NFU) नीति उसे जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करती है।
  • भारत ने हमेशा परमाणु हथियारों को अंतिम विकल्प के रूप में रखा है.
  • केवल रक्षात्मक प्रतिक्रिया के लिए।
  • यह नीति उसे पाकिस्तान और संभावित ईरान जैसे देशों से भिन्न बनाती है,
  • जो परमाणु कार्यक्रम को एक रणनीतिक दबाव के हथियार की तरह प्रस्तुत करते हैं।

8. पाकिस्तान-चीन परमाणु गठजोड़: भारत के लिए दोहरा खतरा

  • पाकिस्तान को परमाणु तकनीक और मिसाइल प्रणाली चीन से प्राप्त हुई — विशेष रूप से M-11 मिसाइलें।
  • यह चीन की ‘String of Pearls’ रणनीति का हिस्सा है, जिससे भारत को सामरिक रूप से घेरा जाए।
  • पाकिस्तान और चीन का यह गठबंधन भारत के पूर्वी और पश्चिमी मोर्चों को अस्थिर करता है।

9. इज़रायल-ईरान टकराव और भारत की कूटनीतिक चुनौती

  • इज़रायल भारत का रक्षा, तकनीक और खुफिया सहयोगी है।
  • वहीं ईरान ऊर्जा और पश्चिम एशिया रणनीति का महत्वपूर्ण साझेदार है।
  • यदि इज़रायल-ईरान संघर्ष बढ़ता है, तो भारत के सामने निष्पक्षता और हित-संरक्षण के बीच संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होगा।
  • भारत को चाबहार पोर्ट की सुरक्षा, मध्य एशिया तक पहुंच, और ऊर्जा आपूर्ति को बचाए रखना जरूरी है।

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हमारी राय :

ईरान परमाणु शक्ति बनने की ओर बढ़ता हुआ देश है,

जिसकी भू-राजनीतिक स्थिति और वैचारिक घोषणाएँ पश्चिम और इज़रायल के लिए असहज हैं।

लेकिन पाकिस्तान एक स्थापित परमाणु शक्ति होते हुए भी कई मायनों में अधिक अस्थिर,

अधिक खतरनाक और सीधे भारत के लिए चुनौती है।

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