भारत में आर्थिक असमानता और बेरोजगारी : बढ़ती खाई और भविष्य की चुनौती

परिचय

भारत एक तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, लेकिन इसके समानांतर आर्थिक असमानता और बेरोजगारी भी गहरी होती जा रही हैं। अमीर और गरीब के बीच की खाई हर वर्ष चौड़ी हो रही है। साथ ही, बड़ी संख्या में शिक्षित युवा रोजगार के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यह ब्लॉग इन दोनों विषयों का विस्तृत मूल्यांकन करता है — तथ्य, आंकड़े, कारण और समाधान सहित।

आर्थिक असमानता: आंकड़े और यथार्थ

Oxfam India की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, भारत के केवल 1% सबसे अमीर लोगों के पास कुल संपत्ति का 40.5% हिस्सा है, जबकि निचले 50% के पास केवल 3% संपत्ति है।

  • गिनी सूचकांक: World Bank Data के अनुसार, भारत का गिनी इंडेक्स 2023 में 0.48 था।
  • शहरी बनाम ग्रामीण: शहरों में प्रति व्यक्ति आय ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में 3 गुना अधिक है।
  • लैंगिक असमानता: महिलाओं की श्रम भागीदारी मात्र 23% है।

बेरोजगारी की स्थिति

CMIE के अनुसार:

  • जनवरी 2025 में भारत की कुल बेरोजगारी दर 8.1% रही।
  • शहरी बेरोजगारी: 9.2%
  • ग्रामीण बेरोजगारी: 7.5%
  • 15–29 आयु वर्ग में बेरोजगारी दर: 18% से अधिक

इसका मतलब है कि लाखों युवा हर साल डिग्री लेने के बाद भी बेरोजगार हैं या “अंडर-एम्प्लॉयड” हैं।

आर्थिक असमानता और बेरोजगारी के बीच संबंध

जब संसाधनों की पहुँच सीमित लोगों तक होती है, तो आर्थिक विकास का लाभ व्यापक स्तर पर नहीं पहुँचता। इसका परिणाम होता है:

  • न्यायपूर्ण अवसरों की कमी
  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में विषमता
  • नौकरी के लिए कौशल का अभाव

कारण: समस्याओं की जड़ क्या है?

  • शिक्षा और कौशल का अंतर: डिग्री है, लेकिन स्किल नहीं।
  • स्वचालन और तकनीकी परिवर्तन: AI और ऑटोमेशन के कारण पारंपरिक नौकरियाँ घट रही हैं।
  • शहरीकरण का असंतुलन: ग्रामीण क्षेत्रों में अवसरों की कमी लोगों को अनौपचारिक क्षेत्र की ओर धकेल रही है।
  • नीतिगत कमजोरियाँ: योजनाओं और क्रियान्वयन में बड़ा अंतर।

समाधान और संभावनाएँ

सरकार, निजी क्षेत्र और समाज — तीनों को एक साथ काम करना होगा:

  1. राष्ट्रीय कौशल नीति (NSDC) को और अधिक व्यावहारिक बनाना – NSDC Official Site
  2. रोज़गार सृजन को केंद्रित नीतियाँ: MSMEs को प्रोत्साहन देना – Labour Ministry
  3. शिक्षा प्रणाली में सुधार: industry-linked learning & apprenticeships
  4. टेक्नोलॉजी आधारित रोजगार सूचना: डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए गांव-गांव में नौकरियों की सूचना
  5. शहरी MGNREGA जैसी योजनाएं: न्यूनतम आय की गारंटी सुनिश्चित करना

निष्कर्ष

भारत की जनसंख्या एक बड़ी शक्ति है, लेकिन यदि इसे शिक्षित, प्रशिक्षित और रोजगारयुक्त नहीं किया गया, तो यह बोझ बन सकती है। आर्थिक असमानता और बेरोजगारी केवल आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि करोड़ों परिवारों की रोज़मर्रा की लड़ाई है। यह वक्त है – समावेशी और न्यायपूर्ण विकास को राष्ट्रीय एजेंडा बनाने का।

Sources:

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मनोज चतुर्वेदी शास्त्री

मनोज चतुर्वेदी शास्त्री

पत्रकार, समाजसेवी, आध्यात्मिक मार्गदर्शक एवं लेखक।
समाज निर्माण की दिशा में वैचारिक लेखन और जन-जागरूकता अभियान के माध्यम से सक्रिय।

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मनोज चतुर्वेदी शास्त्री

पत्रकार, समाजसेवी और डिजिटल युग में सामाजिक चेतना के वाहक।

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