पहलगाम घाटी में निर्दोषों की नृशंस हत्या के पश्चात से चहुंओर भारत-पाकिस्तान युद्ध का बिगुल सुनाई दे रहा है।
पहलगाम घाटी में सिर्फ गोलियों की गूंज नहीं, भारत के धैर्य की परीक्षा थी।
ये हमला केवल भारत पर नहीं अपितु सम्पूर्ण मानवता पर किया गया था।
लेकिन इस बार देश रोया नहीं बल्कि गूंजा केवल एक स्वर: ‘अब आर-पार!’
सीमा पर सेना दुश्मन के सीने पर अग्निवर्षा को तैयार है।
राजधानी में मोदी सरकार ने प्रतिशोध की घोषणा नहीं की अपितु उसे अपने दृढ़ संकल्प से सिद्ध किया।
ऐसे में जहाँ एक ओर प्रत्येक देशवासी की आँखों में बदले के दहकते अंगारे हैं : ” अबकी बार पूरा हिसाब चाहिए”
लेकिन …. संसद के गलियारों में कुछ चेहरे ‘चिंतित’ हैं – लेकिन यह चिंता देश के लिए नहीं, वोटबैंक और सत्ता के समीकरणों के लिए है.
सेना का रण:
- सेना के जवानों की रगों में लहू नहीं, ज्वाला दौड़ रही है.
- LOC, सियाचिन, राजस्थान से अरुणाचल तक – भारत की सीमाएँ आज रणभूमि बन चुकी हैं।
- पैरा-कमांडो दस्ते सीमापार घुसपैठ की लिस्ट तैयार कर चुके हैं।
- भारतीय वायुसेना के Su-30 और राफेल ‘टारगेट लॉक’ की प्रैक्टिस कर रहे हैं।
- नौसेना ने अरब सागर में पाक समुद्री सीमा के पास ऑपरेशन ‘गरुड़’ एक्टिवेट किया है।
जब शब्द नहीं, शौर्य बोलता है
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फिर दिखाया कि जब देश लहूलुहान हो, तो नेतृत्व केवल ‘शोक संदेश’ नहीं देता, शौर्य का आदेश देता है।
- सिंधु जल संधि निलंबन एक ऐतिहासिक फैसला था — पानी की एक-एक बूँद अब भारत के नियंत्रण में रहेगी।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की रणनीति में तीन स्तरीय प्रतिशोध की योजना: कूटनीतिक, आर्थिक और सैन्य।
- G-20 मंच से पाकिस्तान को ‘आतंकी देश’ घोषित करने की मांग
विपक्ष की राजनीति: राष्ट्र का अपमान
- ऐसे संवेदनशील समय में भी विपक्ष के कुछ नेता पाकिस्तान से बात करने की सलाह दे रहे हैं।
- राहुल गांधी: “हमें युद्ध से नहीं, शांति से आगे बढ़ना चाहिए।”
- चरणजीत सिंह चन्नी : “मैं तो आज तक सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांग रहा हूँ “
- रॉबर्ट वाड्रा : “पहचान को देखना और फिर किसी की हत्या करना यह प्रधानमंत्री के लिए एक संदेश है ।”
- ये वही नेता हैं जो नफरत की बात कहकर भारत की पीड़ा का मज़ाक उड़ा रहे हैं।
- लाशों पर राजनीति करने वाले “राजनीतिक गिद्ध” वातानुकूलित कमरों में बैठे वोटबैंक की गिनती कर रहे हैं।
मीडिया की भूमिका
- शहीदों की असली कहानियाँ
- सेना की तैयारियों का सीमित लेकिन साहसी कवरेज
- पाक की पोल खोलती रिपोर्टिंग
लेकिन दूसरा वर्ग:
- हर डिबेट में राष्ट्रभक्ति का मज़ाक उड़ाता है
- “कहाँ है सबूत?” जैसे सवालों से सेना के पराक्रम पर प्रश्नचिन्ह लगाता है
- सरकार को ‘वॉर क्रिमिनल’ तक कहने से नहीं चूकता
यह पत्रकारिता नहीं, प्रोपेगेंडा है। आज मीडिया को यह समझना होगा कि उनके हाथों में माइक है न कि मिसाइल?
हमारी राय
भारत-पाक युद्ध केवल सीमा का विषय नहीं — यह राष्ट्र की आत्मा का प्रश्न है। जब मोदी सरकार पहलगाम का बदला लेने को तैयार है, सेना आक्रमण की मुद्रा में है, और जनता राष्ट्र के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है — तब विपक्ष के बयान इतिहास में कायरता के अध्याय बनेंगे।
यह समय है — राष्ट्र के साथ खड़े होने का। न तो डर का वक्त है, न ही वोट की गिनती का। अब हर भारतवासी को तय करना है — वह इतिहास में राष्ट्र का योद्धा बनेगा या तमाशबीन?
पाठकगणों से निवेदन : इस लेख को हर राष्ट्रवादी और देशभक्त तक पहुँचाइए, यही सच्चा राष्ट्रवाद है.

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