2025 में केंद्र सरकार द्वारा जातीय जनगणना को मंजूरी दिए जाने का निर्णय एक नए सामाजिक-राजनीतिक युग की शुरुआत है। जहां एक ओर इससे पिछड़े वर्गों को न्याय मिलने की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर यह जाति आधारित राजनीति को हवा देने का खतरा भी बन सकता है।
1. जातीय जनगणना क्या है?
जातीय जनगणना में नागरिकों की जाति की जानकारी भी रिकॉर्ड की जाती है। पिछली बार 1931 में जातीय आंकड़े दर्ज हुए थे। 2011 में SECC हुआ, लेकिन वह सार्वजनिक नहीं हुआ।
2. यह निर्णय क्यों लिया गया?
- सामाजिक न्याय की मांग
- आरक्षण का पुनर्मूल्यांकन
- सरकारी योजनाओं का पुनर्गठन
- राजनीतिक दबाव (बिहार और दक्षिण भारत से)
3. किसे लाभ होगा?
- OBC, EBC, SC/ST को उनके वास्तविक अनुपात के अनुसार संसाधन मिल सकते हैं।
- विपक्षी दलों को चुनावी रणनीति बनाने में मदद मिलेगी।
4. किसे नुकसान हो सकता है?
- वर्तमान प्रभावशाली जातियाँ जो अधिक संसाधन ले रही थीं।
- सवर्ण वर्गों में असंतोष की संभावना।
- जातिवाद विरोधी आंदोलन कमजोर हो सकते हैं।
5. क्या इससे जातिवाद बढ़ेगा?
- यदि राजनीति इसमें हस्तक्षेप करती है तो हाँ।
- यदि डेटा का उपयोग नीति-निर्माण और समानता के लिए होता है तो नहीं।
6. विपक्ष क्यों समर्थन करता है?
- OBC आधारित राजनीति की मजबूती
- “संख्या के आधार पर हक़” का सिद्धांत
- मंडल 2.0 की पुनर्प्रस्तुति
7. राजनीतिक प्रभाव:
- नई जाति आधारित राजनीति का उभार
- कांग्रेस, RJD, SP, JDU जैसे दलों को ताकत
- BJP के लिए रणनीतिक चुनौती
8. दोधारी तलवार
जातीय जनगणना एक दोधारी तलवार है। यह समानता का रास्ता बन सकती है या जातिवाद की राजनीति को गहरा सकती है। सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि इसका उपयोग डेटा के रूप में होता है या हथियार के रूप में।
हमारी राय
जातीय जनगणना 2025 भारत की सामाजिक संरचना को पारदर्शिता और न्याय दिलाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम हो सकता है — यदि इसे राजनीतिक लाभ की जगह सामाजिक सशक्तिकरण के लिए इस्तेमाल किया जाए।

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