दुनिया भर में जब भी आतंकवाद की बात होती है, अक्सर चर्चा के केंद्र में इस्लामिक कट्टरपंथ आ खड़ा होता है। इसी पृष्ठभूमि में 2015 में जब सऊदी अरब ने इस्लामिक सेना IMCTC (इस्लामिक मिलिट्री काउंटर टेररिज़्म कोएलिशन) की घोषणा की, तो यह कदम superficially आतंकवाद के खिलाफ एक ऐतिहासिक पहल जैसा प्रतीत हुआ। लेकिन जल्द ही यह सवाल उठने लगे — क्या यह गठबंधन वास्तव में आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए है या इसका उद्देश्य कुछ और है?
IMCTC में 40 से अधिक मुस्लिम-बहुल देशों की भागीदारी है, लेकिन इसमें प्रमुख शिया राष्ट्र अनुपस्थित हैं। इसका नेतृत्व पाकिस्तान के पूर्व सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ के हाथों में सौंपा गया — जिसने इसे एक सुन्नी ध्रुवीकरण के रूप में देखे जाने की आशंका को और अधिक बल दिया।
जब गठबंधन धार्मिक पहचान के आधार पर बने, और उसमें एक वर्ग को बाहर रखा जाए, तो यह वैश्विक शक्ति-संतुलन के लिए भी सवाल बन जाता है।विशेष रूप से भारत जैसे बहुधार्मिक, लोकतांत्रिक और आतंकवाद से त्रस्त देश के लिए — यह गठबंधन भविष्य में सामरिक, वैचारिक और सामुदायिक खतरे उत्पन्न कर सकता है।
क्या IMCTC वास्तव में इस्लामिक स्टेट या अल-कायदा जैसी ताक़तों के विरुद्ध निर्णायक भूमिका निभाएगा? या यह एक राजनीतिक इस्लाम की पुनर्स्थापना की कोशिश बनकर रह जाएगा? यही सवाल इस लेख की मूल जिज्ञासा है, जिसे हम ऐतिहासिक, सामरिक, और भू-राजनीतिक दृष्टिकोणों से गहराई से समझने का प्रयास करेंगे।
IMCTC का इतिहास और गठन की पृष्ठभूमि
IMCTC की औपचारिक घोषणा 15 दिसंबर 2015 को सऊदी अरब के रक्षामंत्री और तत्कालीन उप युवराज मोहम्मद बिन सलमान द्वारा की गई।
इसमें प्रारंभ में 34 मुस्लिम-बहुल देश शामिल किए गए थे, जिनमें अधिकांश सुन्नी राष्ट्र हैं।
The list of 34 members: Saudi Arabia, Bahrain, Bangladesh, Benin, Chad, Comoros, Djibouti, Egypt, Gabon, Guinea, Ivory Coast, Jordan, Kuwait, Lebanon, Libya, Malaysia, Maldives, Mali, Morocco, Mauritania, Niger, Nigeria, Pakistan, the Palestinians, Qatar, Senegal, Sierra Leone, Somalia, Sudan, Togo, Tunisia, Turkey, United Arab Emirates and Yemen.
बाद के वर्षों में यह संख्या बढ़ी,
लेकिन सक्रिय और रणनीतिक रूप से निर्णायक भूमिका केवल इन्हीं चुनिंदा देशों तक सीमित रही।
इसके उद्देश्यों और ढांचे की विस्तृत जानकारी IMCTC की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है।”
इस घोषणा में कहा गया कि यह गठबंधन मुस्लिम देशों की सामूहिक इच्छा का प्रतीक होगा, जो “आतंकवाद से इस्लाम की रक्षा” के लिए समर्पित है।
संरचना और स्वरूप पर प्रश्नचिन्ह
इस गठबंधन की उत्पत्ति ऐसे समय हुई जब मध्य-पूर्व पहले से ही अनेक संकटों से घिरा हुआ था.
सीरिया में गृहयुद्ध, इराक में इस्लामिक स्टेट की बढ़ती ताक़त, यमन में सऊदी और ईरान के बीच प्रॉक्सी युद्ध, और तुर्की-कुर्द तनाव।
इन सभी परिस्थितियों के बीच IMCTC को एक “वैकल्पिक सुन्नी सैन्य शक्ति” के रूप में देखा गया।
गठन से पहले, सऊदी ने यमन युद्ध में पाकिस्तान से सैन्य सहायता मांगी थी, जिसे पाक संसद ने ठुकरा दिया।
लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान के पूर्व सेनाध्यक्ष राहील शरीफ को इस्लामिक सेना का प्रमुख नियुक्त कर दिया गया।
यह नियुक्ति खुद इस गठबंधन की वैचारिक प्रकृति और उद्देश्य पर सवाल उठाती है। (BBC रिपोर्ट)
सदस्य देशों की सूची भी बेहद संकीर्ण है, इसमें न तो शिया-बहुल राष्ट्र शामिल हैं और न ही धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र।
इसके विपरीत, वे देश शामिल हैं जो सऊदी की सुन्नी धुरी से जुड़े हुए हैं — जैसे पाकिस्तान, मिस्र, यूएई, बहरीन।
IMCTC की संरचना और रणनीतिक संचालन मॉडल
IMCTC का मुख्यालय रियाद (सऊदी अरब) में है, और इसका नेतृत्व सैन्य और वैचारिक दोनों स्तरों पर सऊदी-प्रभुत्व वाला है।
इसका ढांचा चार स्तंभों पर आधारित है:
- विचारधारा
- संचार
- सैन्य समन्वय
- आतंक वित्तपोषण के विरुद्ध उपाय
लेकिन अब तक इसकी कोई ठोस आतंकवाद-निरोधी सैन्य कार्रवाई सामने नहीं आई है।
अधिकांश गतिविधियाँ केवल सेमिनार, बयानबाजी और PR-ड्रिवन दिखावे तक सीमित रही हैं।
“इस्लाम की रक्षा” जैसे शब्दों में आतंकवाद विरोध की परिभाषा को धार्मिक रंग देने की कोशिश न केवल वैश्विक आतंकवाद की समझ को संकुचित करती है,
बल्कि ग़ैर-मुस्लिम देशों के संदर्भ में एक सांप्रदायिक और वैचारिक मंच तैयार करती है।
भारतवर्ष के लिए संभावित खतरे और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
भारत IMCTC का हिस्सा नहीं है,
लेकिन इसका भू-राजनीतिक प्रभाव भारत की सुरक्षा, सामाजिक तानेबाने और विदेश नीति पर पड़े बिना नहीं रहेगा।
पाकिस्तान की केंद्रीय भूमिका भारत के लिए संदेह और सतर्कता का विषय है।
भारत में 20 करोड़ से अधिक मुसलमान हैं।
अगर IMCTC जैसी संस्थाएं वैश्विक स्तर पर इस्लामी पहचान को खतरे में बताकर वैचारिक प्रभाव डालने की कोशिश करती हैं,
तो इसका परिणाम धार्मिक ध्रुवीकरण और कट्टरपंथी प्रवृत्तियों के रूप में सामने आ सकता है।
इसके अतिरिक्त, IMCTC जैसे संगठन यदि “इस्लाम पर हमला” जैसे नैरेटिव के आधार पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लामबंदी करते हैं,
तो कश्मीर और आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर भारत की स्थिति को कमजोर करने की कोशिशें हो सकती हैं।
सुरक्षा दृष्टि से भी, यदि खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीय मुस्लिमों को इस तरह के वैचारिक प्रचार से प्रभावित किया जाए,
तो यह भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए एक नया खतरा उत्पन्न कर सकता है।
रणनीतिक अनुशंसाएँ
IMCTC एक सांप्रदायिक रूप से सीमित, राजनीतिक रूप से प्रेरित और सामरिक रूप से कमजोर संगठन है.
जो आतंकवाद विरोध के नाम पर एक धर्म-आधारित सुरक्षा गठबंधन का रूप ले चुका है।
भारत को इस तरह के संगठनों की गतिविधियों पर गहराई से नज़र रखनी चाहिए.
भारतीय विदेश नीति में यह स्पष्ट करना चाहिए कि आतंकवाद से लड़ाई मानवता और वैश्विक न्याय के आधार पर होनी चाहिए.
रणनीतिक स्तर पर भारत को चाहिए कि वह—
- मुस्लिम समुदायों में कट्टरपंथी प्रचार का प्रतिकार करने हेतु वैचारिक स्पष्टता बढ़ाए,
- खाड़ी देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करे,
- और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर “धर्मनिरपेक्ष आतंकवाद विरोध” की अवधारणा को आगे बढ़ाए।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
IMCTC क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
IMCTC (Islamic Military Counter Terrorism Coalition) एक सैन्य गठबंधन है जिसे सऊदी अरब ने 2015 में इस्लामी देशों को आतंकवाद के खिलाफ एकजुट करने के लिए गठित किया था। इसका घोषित उद्देश्य आतंकवाद से इस्लाम की रक्षा करना है।
क्या IMCTC में सभी मुस्लिम देश शामिल हैं?
नहीं। प्रारंभ में इसमें 34 मुस्लिम देश शामिल थे, लेकिन इसमें शिया बहुल देश जैसे ईरान, इराक, सीरिया, और लेबनान शामिल नहीं हैं। इससे इसके सुन्नी-ध्रुवीकृत स्वरूप पर सवाल उठे हैं।
भारत IMCTC का हिस्सा क्यों नहीं है?
भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और वह किसी भी मजहबी सैन्य गठबंधन से दूरी बनाकर चलता है। साथ ही IMCTC की पाकिस्तान-केंद्रित सैन्य भूमिका भारत के लिए रणनीतिक रूप से संवेदनशील है।
क्या IMCTC ने कोई वास्तविक सैन्य कार्रवाई की है?
अब तक IMCTC की ओर से किसी आतंकवादी संगठन के खिलाफ कोई स्वतंत्र या संयुक्त सैन्य अभियान सामने नहीं आया है। इसकी गतिविधियाँ मुख्यतः सम्मेलन, प्रशिक्षण और बयानबाजी तक सीमित रही हैं।
भारत के लिए IMCTC कितना ख़तरनाक हो सकता है?
IMCTC भारत के लिए सामरिक और वैचारिक खतरा बन सकता है — विशेषकर यदि यह संगठन सुन्नी इस्लामी पहचान के नाम पर वैश्विक ध्रुवीकरण करता है और भारतीय मुस्लिमों में वैचारिक प्रभाव फैलाता है।
क्या IMCTC एक जिहादी गठबंधन है?
आधिकारिक रूप से नहीं। लेकिन इसकी संरचना, सदस्यता और वैचारिक झुकाव इसे आलोचकों की दृष्टि में एक सुन्नी-ध्रुवीकृत शक्ति मंच बनाते हैं, जो धार्मिक राजनीति को सैन्य रूप में प्रस्तुत करता है।
क्या यह संगठन संयुक्त राष्ट्र या अंतरराष्ट्रीय कानून के अंतर्गत आता है?
IMCTC कोई संयुक्त राष्ट्र समर्थित या अंतरराष्ट्रीय विधिक रूप से मान्यता प्राप्त सैन्य गठबंधन नहीं है। यह सऊदी अरब के नेतृत्व में स्वायत्त इस्लामी राष्ट्रों का एक रणनीतिक मंच है।
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