क्या ईरान में कट्टरपंथी खामनेई शासन का होगा तख़्तापलट ? आइए इसको विस्तार से समझते हैं.
ईरान पश्चिम एशिया का वह देश है जो सदियों से धार्मिक, राजनीतिक और वैचारिक टकरावों का केंद्र रहा है।
1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान एक “इस्लामिक रिपब्लिक” बना.
जिसकी बागडोर सर्वोच्च नेता (सुप्रीम लीडर) के रूप में अयातुल्ला खामनेई जैसे कट्टरपंथी शासकों के हाथों में केंद्रित हो गई।
इन चार दशकों में ईरान ने अमेरिका, इज़रायल, सऊदी अरब और पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंधों को झेला है।
लेकिन वर्तमान परिस्थितियाँ एक नए युग के संकेत दे रही हैं।
पिछले कुछ वर्षों में, ईरान के भीतर राजनीतिक अस्थिरता, आर्थिक गिरावट, मानवाधिकारों के हनन,
और बाह्य सैन्य दबावों ने खामनेई सरकार की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है।
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ईरानी शासन की संरचना
ईरान की राजनीति धार्मिक और सैन्य ताकत के गहरे गठबंधन पर आधारित है।
सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामनेई के पास सभी संवैधानिक शक्तियाँ हैं,
जिनमें न्यायपालिका, सेना, विदेश नीति, मीडिया और संसद पर अंतिम नियंत्रण शामिल है।
इसके अतिरिक्त, “इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स” (IRGC) एक स्वतंत्र सैन्य-राजनीतिक ताकत के रूप में काम करता है,
जिसका प्रभाव देश की अर्थव्यवस्था से लेकर विदेश नीति तक फैला है।
यह शासन व्यवस्था किसी भी बाहरी या आंतरिक विरोध को दबाने के लिए अत्यंत कुशल और निर्दयी है।
यही कारण है कि अबतक के सभी आंदोलनों और विरोधों को या तो सशस्त्र बलों से दबा दिया गया है या उन पर धार्मिक राष्ट्रवाद का पर्दा डाल दिया गया है।
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आर्थिक संकट और जन-असंतोष
ईरान वर्षों से आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है,
विशेषकर अमेरिका द्वारा लगाए गए एकतरफा प्रतिबंधों के बाद तेल निर्यात घट चुका है,
मुद्रा का मूल्य तेजी से गिरा है, महंगाई चरम पर है और बेरोज़गारी लाखों युवाओं को निराशा की ओर धकेल रही है।
इन हालातों ने जन-असंतोष को उभारा है।
विशेषकर महिलाओं और युवाओं के नेतृत्व में कई बार बड़े स्तर के जन-आंदोलन हुए हैं।
महसा अमीनी की मौत के बाद 2022 में हुआ विरोध-प्रदर्शन इसका स्पष्ट उदाहरण है।
लेकिन इन आंदोलनों को बेरहमी से कुचल दिया गया।
हालांकि, लगातार बढ़ते आक्रोश और सामाजिक असंतुलन शासन की नींव को कमजोर कर रहे हैं।
लोग अब खुलकर “मरते खामनेई” जैसे नारे लगाने लगे हैं, जो कि एक धार्मिक सत्ता के विरुद्ध बगावत का स्पष्ट संकेत है।
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बाहरी दबाव और इज़रायल की रणनीति
2025 में इज़रायल द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों और IRGC के वरिष्ठ अधिकारियों पर हमले ने एक नई रणनीतिक दिशा को जन्म दिया है।
ये हमले मात्र सैन्य ठिकानों को नष्ट करने के लिए नहीं थे, बल्कि उनका उद्देश्य संभवतः शासन परिवर्तन की दिशा में एक वातावरण तैयार करना था।
विशेषज्ञों का मानना है कि इज़रायल अब यह मानकर चल रहा है कि, ईरान की मौजूदा शासन प्रणाली अपने अंतिम चरण में है,
और उसे मात्र एक निर्णायक धक्का देने की जरूरत है।
यह तर्क इस आधार पर दिया जा रहा है कि ईरान की अर्थव्यवस्था ढह रही है,
जनता आक्रोशित है और सत्ता के भीतर भी अब दरारें उभरने लगी हैं। लेकिन इस रणनीति की सफलता संदिग्ध है,
क्योंकि इतिहास गवाह है कि विदेशी हस्तक्षेप से उत्पन्न अस्थिरता अक्सर राष्ट्रवाद के नाम पर सत्ता को और अधिक ताकतवर बना देती है।
क्या IRGC सत्ता से अलग हो सकता है?
ईरान में यदि कोई संस्था खामनेई के शासन को चुनौती दे सकती है तो वह है IRGC।
यह संस्था अपने राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक प्रभाव के बल पर एक समानांतर सत्ता केंद्र के रूप में उभरी है।
यदि IRGC को लगे कि खामनेई के नेतृत्व में राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में है,
या अंतरराष्ट्रीय दबाव असहनीय हो गया है,
तो सत्ता परिवर्तन की आंतरिक प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
हालांकि अभी तक IRGC और खामनेई के बीच सार्वजनिक तौर पर कोई मतभेद नहीं दिखा है।
लेकिन अगर सत्ता हस्तांतरण की जरूरत पड़ी तो यह स्वैच्छिक और आंतरिक सहमति से ही संभव होगा, न कि बाह्य हस्तक्षेप के कारण।
अमेरिका की भूमिका
अमेरिका फिलहाल सीधे शासन परिवर्तन की रणनीति से परहेज़ कर रहा है।
ट्रंप प्रशासन मानवाधिकार, महिला अधिकार और लोकतंत्र के मुद्दों पर दबाव बना रहा है,
लेकिन सैन्य हस्तक्षेप की ओर नहीं बढ़ रहा।
संभवतः अमेरिका यह मानकर चल रहा है कि कोई भी आक्रामक रणनीति ईरान में राष्ट्रवादी प्रतिक्रियाओं को भड़का सकती है ,
और इससे सुधार की संभावनाएँ क्षीण हो सकती हैं।
जनता की भूमिका और मानसिकता
ईरानी जनता में अब धार्मिक नेतृत्व की वैधता को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं।
एक ओर युवावर्ग आधुनिकता, रोजगार और सामाजिक स्वतंत्रता की मांग कर रहा है,
वहीं दूसरी ओर पुरानी पीढ़ी अभी भी धार्मिक राष्ट्रवाद से बंधी हुई है।
यह पीढ़ीगत विभाजन ईरान के भविष्य की राजनीति को आकार दे सकता है।
अगर किसी क्षण जनता के आक्रोश को संगठित नेतृत्व मिल गया,
तो व्यापक विरोध आंदोलन शासन के स्तंभों को हिला सकते हैं।
लेकिन अभी तक ऐसा कोई नेतृत्व या संगठन सामने नहीं आया है जो शासन से खुलकर टकरा सके।
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भविष्य की संभावनाएँ
- यदि अयातुल्ला खामनेई का निधन होता है या वे सत्ता से हटते हैं तो सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकती है।
- उत्तराधिकारी को लेकर सत्ता केंद्रों के बीच संघर्ष की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
- यदि विदेशी दबाव और जनता का असंतोष एक साथ चरम पर पहुँचता है, तो सत्ता के भीतर से ही कोई गुट शासन को बदलने की कोशिश कर सकता है।
- यदि IRGC और धार्मिक नेतृत्व के बीच मतभेद उभरते हैं, तो यह सत्ता के ढांचे को गंभीर रूप से हिला सकता है।
हमारी राय
कुल मिलाकर, फिलहाल ईरान में खामनेई सरकार का तख्तापलट संभावित नहीं लगता।
इसका मुख्य कारण है शासन की मजबूत सैन्य और धार्मिक संरचना।
जनता का असंतोष, आर्थिक संकट और विदेशी दबाव जैसे कारण अवश्य हैं,
लेकिन ये तत्व अभी तक इतना प्रभाव नहीं डाल पाए हैं कि वे शासन के पतन की दिशा में निर्णायक भूमिका निभा सकें।
हालांकि भविष्य में यदि उपरोक्त सभी कारक एकसाथ सक्रिय हो जाएं,
तो आंतरिक सत्ता संघर्ष या नियंत्रित सत्ता हस्तांतरण की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
यह स्पष्ट है कि ईरान अब एक ऐसे मोड़ पर खड़ा है जहाँ हर निर्णय उसका राजनीतिक भविष्य तय करेगा,
और यह भविष्य लोकतांत्रिक परिवर्तन की ओर जाएगा या धार्मिक कट्टरता की ओर,
यह अभी भी भविष्य के गर्भ में छुपा है
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