सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता, अब मात्र एक नैतिक चिंता नहीं रही, बल्कि यह एक बहुस्तरीय सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक और विधिक चुनौती बन चुकी है। इंटरनेट और स्मार्टफोन की सुलभता ने जहाँ एक ओर संवाद और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विस्तार दिया, वहीं दूसरी ओर डिजिटल मंचों पर नग्नता, कामुकता और अश्लील संकेतों की भरमार ने सभ्यता की सीमाओं को चुनौती देना शुरू कर दिया है।
इंस्टाग्राम रील्स, यूट्यूब शॉर्ट्स, स्नैपचैट स्टोरीज़ और फेसबुक वीडियो जैसे प्लेटफॉर्म्स आज ऐसे कंटेंट से पटे पड़े हैं जिनमें सौंदर्य प्रदर्शन की आड़ में यौनिक उत्तेजना की बिक्री हो रही है। यह आलेख इसी प्रवृत्ति का एक गहरा, प्रमाणिक और समाधानोन्मुख विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
I. अश्लीलता की परिभाषा और डिजिटल युग में उसका रूपांतरण
1. पारंपरिक परिभाषा
अश्लीलता वह दृश्य, भाषिक या संकेतात्मक प्रस्तुति होती है जो यौन उद्दीपन को प्राथमिक उद्देश्य बनाए और सार्वजनिक नैतिकता को आघात पहुँचाए।
2. डिजिटल युग में परिवर्तन
ऑनलाइन मंचों ने अश्लीलता को अत्यंत सूक्ष्म, छिपे हुए लेकिन तीव्र रूप में पेश करना शुरू किया है।
पहले जो सामग्री वयस्क पत्रिकाओं या प्रतिबंधित वीडियो तक सीमित थी,
वह आज आम सार्वजनिक प्लेटफॉर्म्स पर ‘एंटरटेनमेंट’ और ‘ट्रेंडिंग’ के नाम पर खुलेआम उपलब्ध है।
II. सोशल मीडिया पर अश्लीलता के बढ़ते रूप
1. नग्नता और अंग प्रदर्शन
फैशन और फिटनेस के नाम पर अर्धनग्न या पूरी तरह यौनिक वेशभूषा में वीडियोज़ पोस्ट करते हैं.
2. डबल मीनिंग कंटेंट और मीम्स
सैक्सुअल हिंटिंग, भद्दे संवाद और शब्दों का खेल, आज ‘हास्य’ के नाम पर बेतहाशा प्रसारित किया जा रहा है।
3. लाइव चैट और स्टोरी प्लेटफॉर्म्स पर निजी अंगों का प्रदर्शन
स्नैपचैट, टेलीग्राम, और कुछ इंस्टाग्राम ग्रुप्स पर युवा, पैसे या फॉलोअर्स के लिए अश्लील वीडियो साझा करते हैं।
4. अश्लील चैलेंजेस और डांस ट्रेंड्स
Instagram Reels व YouTube Shorts पर ‘बोल्ड डांस’, ‘सेड्यूसिंग ट्रेंड्स’ या ‘सेक्स-हिंटेड चैलेंजेस‘ खुलेआम चल रहे हैं।
III. प्रमुख कारण
1. एल्गोरिदम का लालच
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का एल्गोरिदम ऐसा डिज़ाइन किया गया है कि वह अधिकतम एंगेजमेंट वाले कंटेंट को प्रमोट करे.
और सबसे अधिक व्यूज़ अश्लील या उत्तेजक सामग्री को मिलते हैं।
2. ‘वायरल’ होने की भूख
युवावर्ग के बीच एक मानसिक विकृति बन गई है — ‘वायरल’ होना, चाहे किसी भी माध्यम से हो।
इसके लिए वे अपनी गरिमा, नैतिकता और शरीर की मर्यादा को भी दांव पर लगाने को तैयार हैं।
3. डिजिटल अशिक्षा और अभिभावकीय लापरवाही
अधिकांश माता-पिता यह समझ ही नहीं पाते कि उनके बच्चों के मोबाइल में क्या देखा जा रहा है,
कौन-से ऐप्स हैं, और किस तरह के कंटेंट से वे प्रभावित हो रहे हैं।
4. यूट्यूब मोनेटाइजेशन और डिजिटल पैसा कमाने की लालसा
आज अनेक किशोर और नवयुवतियाँ “बोल्ड वीडियो” बनाकर पैसा कमाने की होड़ में हैं।
5. पोर्नोग्राफ़ी उद्योग का अप्रत्यक्ष प्रचार
बहुत से सोशल मीडिया पेज वास्तव में पोर्न वेबसाइट्स के फनेल के रूप में कार्य कर रहे हैं,
जो धीरे-धीरे दर्शक को पोर्न की ओर आकर्षित करते हैं।
IV. दुष्प्रभाव
1. मानसिक विकृति और यौन कुंठा
अल्पवयस्कों में समय से पूर्व यौनिक जिज्ञासा, कुंठा और आत्महीनता जन्म लेती है।
इससे अवसाद, आत्महत्या प्रवृत्ति और व्यसन बढ़ता है।
2. स्त्री की वस्तुकरण प्रवृत्ति का विस्तार
सोशल मीडिया पर महिलाओं का उपभोक्तावादी रूप में चित्रण, उन्हें केवल ‘शरीर’ बना देता है.
यह दृष्टिकोण समाज में बलात्कार, छेड़छाड़ और अपमान की मानसिकता को जन्म देता है।
3. पारिवारिक मूल्यों का विघटन
किशोरों और युवाओं की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं।
रिश्तों में वफ़ादारी, मर्यादा और आत्मीयता के स्थान पर आकर्षण और उत्तेजना की अस्थायी भावना हावी होती है।
4. अश्लीलता की लत (Digital Addiction)
Like, Share, Follow और Comments की भूख व्यक्ति को इस कंटेंट के साथ बार-बार जुड़ने को विवश करती है।
यह एक प्रकार की डिजिटल लत है जो समय, ऊर्जा और मानसिक स्थिरता को क्षीण करती है।
5. समाज में अपराध की वृद्धि
साइबर बुलीइंग, मॉर्फ्ड फोटो, बदनाम करने वाले वीडियोज़ — इन सबका सीधा संबंध अश्लीलता से है।
V. समाधान : दिशा और दृष्टि
1. सामाजिक नैतिकता और शिक्षा का पुनरुद्धार
विद्यालय स्तर पर ही यौनिकता के प्रति स्वस्थ, मर्यादित और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की शिक्षा दी जाए।
‘मीडिया साक्षरता‘ को पाठ्यक्रम का भाग बनाया जाए।
2. प्लेटफॉर्म्स पर कड़ी निगरानी और रेगुलेशन
Meta, Google, YouTube आदि को स्पष्ट गाइडलाइन के अंतर्गत ऐसे कंटेंट को डिमोट या बैन करने की बाध्यता दी जाए।
RTI के माध्यम से सरकारें जवाबदेही तय करें।
3. भारत सरकार द्वारा ‘डिजिटल मर्यादा अभियान’
सरकार को एक समग्र अभियान चलाना चाहिए जिसमें सोशल मीडिया पर नैतिकता, मर्यादा और संस्कृति को बढ़ावा देने वाले क्रिएटर्स को प्रोत्साहन मिले।
4. अभिभावकों और शिक्षकों की सक्रिय भूमिका
बच्चों के मोबाइल और इंटरनेट उपयोग पर नियमित दृष्टि रखी जाए।
संवाद, सलाह और विश्वास आधारित रिश्ता बनाकर कंटेंट को लेकर जागरूकता बढ़ाई जाए।
5. युवाओं में वैकल्पिक मंचों और प्रतिभा का प्रोत्साहन
सृजनात्मक, ज्ञानवर्धक, हास्यप्रधान या मोटिवेशनल कंटेंट को वायरल बनाने का प्रयास हो।
स्वयं युवाओं को ‘सेक्स सेल्स’ जैसे ट्रेंड के विरुद्ध ‘सेन्स सेल्स’ अभियान चलाना चाहिए।
6. कानूनी सुधार और कठोरता
IPC और IT एक्ट की धाराओं में संशोधन कर सोशल मीडिया पर अश्लीलता प्रसारित करने वालों को त्वरित दंड और डिजिटल बैन की व्यवस्था हो।
हमारी राय
“सोशल मीडिया पर बढ़ती अश्लीलता” आज एक ऐसा डिजिटल ज्वर बन चुका है, जो मनुष्य की चेतना, संस्कृति और सामाजिक संतुलन को भीतर से संक्रमित कर रहा है। यह केवल एक व्यक्तिगत विकल्प नहीं, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी का प्रश्न है।
इसके समाधान के लिए केवल सरकार या कंपनियों को ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग — विशेषकर युवा पीढ़ी — को स्वयं आगे आना होगा। एक विवेकशील, सुसंस्कृत और मर्यादित डिजिटल भारत की नींव आज ही रखनी होगी — नहीं तो सोशल मीडिया पर अश्लीलता की यह सुनामी हमें नैतिक शून्यता की ओर बहा ले जाएगी।
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