“तुर्की के इमाम हातिप स्कूल्स”—यह शब्द अब केवल धार्मिक शिक्षा तक सीमित नहीं रहा। यह एक ऐसा वैचारिक औज़ार बन चुका है, जिसके माध्यम से तुर्की सरकार, विशेषकर राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोआन की इस्लामी राष्ट्रवादी नीतियाँ, वैश्विक इस्लामी पुनर्जागरण के नाम पर कट्टरता का प्रसार कर रही हैं।
ये स्कूल धर्म की आड़ में लोकतंत्र, संविधान और वैज्ञानिक चेतना को ख़ारिज करते हुए एक नई पीढ़ी को धार्मिक कट्टरता के रास्ते पर ले जा रहे हैं।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इमाम हातिप स्कूल्स की शुरुआत 1924 में तुर्की के पहले राष्ट्रपति मुस्तफा कमाल अतातुर्क द्वारा की गई थी।
उद्देश्य था—धर्मगुरुओं और इमामों को आधुनिक और धार्मिक शिक्षा के समन्वय से प्रशिक्षित करना।
लेकिन 2002 में जब एर्दोआन की पार्टी AKP सत्ता में आई, तब इन स्कूलों को एक नई दिशा दी गई।
अब यह केवल धार्मिक प्रशिक्षण नहीं, बल्कि एक वैचारिक निर्माण केंद्र बन गए।
वर्तमान संरचना और पाठ्यक्रम
आज तुर्की के हजारों इमाम हातिप स्कूल्स में लगभग 30 लाख छात्र पढ़ रहे हैं।
इनका पाठ्यक्रम पारंपरिक इस्लामी विषयों जैसे कि तफ़्सीर (कुरान की व्याख्या), हदीस, शरिया, और अरबी भाषा पर केंद्रित होता है।
साथ ही विज्ञान, गणित और इतिहास जैसे विषयों को या तो गौण बना दिया गया है या इस्लामी दृष्टिकोण से संशोधित किया गया है।
यहां छात्र केवल धार्मिक सिद्धांत नहीं सीखते,
बल्कि उन्हें यह भी सिखाया जाता है कि इस्लामी शासन क्यों श्रेष्ठ है, और लोकतांत्रिक व्यवस्था एक ‘काफिर व्यवस्था’ है।
यह वैचारिक आग्रह आधुनिक तुर्की को उसी कट्टरपंथ की ओर ले जा रहा है जिससे अतातुर्क ने देश को दूर किया था।
तुर्की की आंतरिक राजनीति और इन स्कूलों की भूमिका
एर्दोआन की सरकार ने तुर्की की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था को योजनाबद्ध तरीके से बदलने के लिए इमाम हातिप स्कूल्स को रणनीतिक रूप से पुनर्संरचित किया है।
- AKP ने शिक्षा बजट का बड़ा हिस्सा इन स्कूलों को आवंटित किया।
- धर्मनिरपेक्ष पब्लिक स्कूल्स को हतोत्साहित किया गया।
- विश्वविद्यालयों में प्रवेश में इमाम हातिप छात्रों को विशेष वरीयता दी गई।
इसका उद्देश्य है—एक ऐसी पीढ़ी तैयार करना जो इस्लामी राष्ट्रवाद को ही एकमात्र वैध पहचान मानती हो और पश्चिमी जीवनशैली से नफरत करे।
वैचारिक एजेंडा और खुफिया नेटवर्क
तुर्की की खुफिया एजेंसी MIT (Milli İstihbarat Teşkilatı) और धार्मिक मामलों की निदेशालय Diyanet इन स्कूलों के वैश्विक प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं।
अफ्रीका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत जैसे देशों में ये संस्थाएँ धार्मिक संगठन, NGO और स्कॉलरशिप के माध्यम से ‘इमाम हातिप मॉडल’ का प्रचार कर रही हैं।
इन स्कूलों के माध्यम से एक ऐसा नैरेटिव गढ़ा जा रहा है जो इस्लामी राष्ट्रवाद को नैतिक व राजनीतिक श्रेष्ठता का रूप देता है,
और मुस्लिम युवाओं को उस वैश्विक इस्लामी उम्मा (Ummah) का हिस्सा बनने के लिए तैयार करता है,
जिसकी कल्पना मुस्लिम ब्रदरहुड और अब एर्दोआन समर्थित गुट करते हैं।
Diyanet: धार्मिक प्रचार की वैश्विक मशीन
Diyanet, तुर्की की एक सरकारी धार्मिक संस्था है
जो मस्जिदों, धार्मिक शिक्षकों और इस्लामी सांस्कृतिक केंद्रों के माध्यम से दुनिया भर में तुर्की की इस्लामी सोच को प्रचारित करती है।
- यूरोप, विशेषकर जर्मनी, फ्रांस और नीदरलैंड में Diyanet संचालित मस्जिदें कट्टर प्रवचन देती हैं।
- भारत में कुछ मुस्लिम धार्मिक संस्थानों को अप्रत्यक्ष सहायता प्रदान की जा रही है।
- Diyanet विदेशी मुस्लिम आबादी को तुर्की केंद्रित सोच से जोड़ता है और तुर्की को उनका सांस्कृतिक रक्षक प्रस्तुत करता है।
वैश्विक विस्तार
बांग्लादेश:
यहां तुर्की ने जमात-ए-इस्लामी से जुड़ी संस्थाओं को सहयोग देकर ऐसे स्कूलों की स्थापना की जो स्थानीय शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं।
‘इमाम हातिप मॉडल’ को सूफी परंपराओं से काटकर वहाबी-देओबंदी दृष्टिकोण से जोड़ा जा रहा है।
अफ्रीका:
सोमालिया, नाइजीरिया, सूडान जैसे देशों में तुर्की आर्थिक सहायता और इस्लामी शिक्षा की आड़ में अपने प्रभाव का विस्तार कर रहा है।
वहाँ धार्मिक शिक्षा के नाम पर कट्टरपंथ को संस्थागत रूप दिया जा रहा है।
भारत:
भारत में यह गतिविधियाँ अब तक सीमित थीं,
जो इमाम हातिप मॉडल से प्रेरित हैं।
यदि यह रुझान अनियंत्रित रहा तो यह देश की धर्मनिरपेक्षता के लिए गंभीर संकट बन सकता है।
इस्लामिक कट्टरपंथ को वैश्विक स्तर पर फ़ैलाने की साजिशों में मुस्लिम देशों की भूमिका को उजागर करता हमारा यह लेख जरुर पढ़ें .
इस्लामिक कट्टरपंथ एक वैश्विक संकट और मुस्लिम देशों की भूमिका
मुस्लिम ब्रदरहुड से वैचारिक साम्य
तुर्की के इमाम हातिप स्कूल्स और मिस्र आधारित मुस्लिम ब्रदरहुड के बीच गहरा वैचारिक साम्य है:
- दोनों इस्लामी शासन को श्रेष्ठ मानते हैं।
- लोकतंत्र को पश्चिमी छलावा बताते हैं।
- शिक्षा का उपयोग वैचारिक विस्तार के लिए करते हैं।
- युवाओं को वैश्विक इस्लामी क्रांति का भागीदार बनाना इनका साझा लक्ष्य है।
यह गठबंधन धार्मिक शिक्षा के बहाने राजनीतिक इस्लाम को स्थायी रूप से स्थापित करने की चेष्टा है।
आलोचना और खतरों का मूल्यांकन
- लोकतंत्र-विरोधी दृष्टिकोण: इन स्कूलों में यह विचार प्रमुखता से पढ़ाया जाता है कि इस्लामी शासन व्यवस्था ही ‘ईश्वरीय विधान’ है और लोकतंत्र एक पश्चिमी भ्रम है।
- स्त्री विरोधी शिक्षाएं: महिला स्वतंत्रता, समानता और आधुनिकता को ‘पश्चिमी षड्यंत्र’ बताकर छात्र-छात्राओं में लैंगिक असमानता को वैचारिक जामा पहनाया जाता है।
- धार्मिक श्रेष्ठता की भावना: इमाम हातिप मॉडल अन्य धर्मों और विचारों को सहिष्णुता से नहीं, बल्कि दमन और अस्वीकार की दृष्टि से देखता है।
- वैश्विक कट्टरता को संस्थागत आधार: यह मॉडल अल-कायदा, मुस्लिम ब्रदरहुड और अन्य इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों के वैचारिक आधार से मेल खाता है।
भारत के लिए नीतिगत सुझाव
- विदेशी फंडिंग प्राप्त कर रही धार्मिक संस्थाओं की गहन जांच।
- मदरसों और धार्मिक स्कूलों के पाठ्यक्रम में संवैधानिक मूल्यों की अनिवार्यता।
- Diyanet और तुर्की के NGO की निगरानी हेतु एक संयुक्त टास्क फोर्स।
- इस्लामी समाज में लोकतांत्रिक मूल्यों की पैरवी करने वाले संगठनों को संस्थागत समर्थन।
- युवाओं को कट्टरता से दूर रखने हेतु समावेशी और समसामयिक धार्मिक शिक्षा मॉडल विकसित करना।
क्या यह वैचारिक युद्ध है?
तुर्की के इमाम हातिप स्कूल्स अब केवल एक शैक्षणिक मॉडल नहीं, बल्कि एक वैचारिक रणनीति बन चुके हैं।
इनके माध्यम से एक वैश्विक मानसिक युद्ध लड़ा जा रहा है.
जिसमें युवाओं को धर्म के नाम पर कट्टरता, घृणा और राष्ट्रविरोध सिखाया जा रहा है।
यह केवल तुर्की तक सीमित नहीं है,
बल्कि विश्व के उन सभी हिस्सों में पहुँच रहा है जहाँ मुस्लिम जनसंख्या है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्र को इस वैचारिक खतरे को समय रहते पहचानना होगा।
धार्मिक स्वतंत्रता और कट्टरता के बीच की रेखा को स्पष्ट रूप से चिन्हित करना होगा,
और यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा किसी भी रूप में नफ़रत, असहिष्णुता और अधिनायकवाद का औजार न बने।
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