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पहलगाम प्रतिशोध : क्या भारत को ईरान की मध्यस्थता स्वीकार करनी चाहिए

भारत एक प्राचीन सभ्यता और आधुनिक लोकतंत्र है, जो अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता को सर्वोपरि मानता है।
आज जब पश्चिम एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य बदल रहा है, और ईरान जैसी शक्तियाँ “मध्यस्थता” की भूमिका निभाने का प्रस्ताव दे रही हैं, तब एक गंभीर प्रश्न उठता है —
क्या भारत को ईरान की मध्यस्थता स्वीकार करनी चाहिए?

उत्तर सरल नहीं, परंतु स्पष्ट है: नहीं।
यह निर्णय सिर्फ भावनाओं या पूर्वाग्रह पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि ईरान के ऐतिहासिक आचरण, वर्तमान नीतियों और वैश्विक छवि का निष्पक्ष मूल्यांकन करते हुए लिया जाना चाहिए।

ईरान: एक ‘मध्यस्थ’ या ‘कट्टरपंथ का संरक्षक’?

ईरान खुद को ‘शांति का दूत’ कहता है, लेकिन वास्तविकता इससे भिन्न है।
विगत दशकों में ईरान:

  • सीरिया, लेबनान, और इराक में सक्रिय आतंकवादी संगठनों जैसे हिजबुल्लाह को खुला समर्थन देता रहा है।
  • यमन में हूथी विद्रोहियों को हथियार और फंडिंग प्रदान कर क्षेत्रीय अस्थिरता फैलाई।
  • इराक में शिया मिलिशियाओं के माध्यम से सत्ता संघर्ष को भड़काया।
  • गाजा पट्टी में हमास जैसे संगठनों के साथ सहयोग किया।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी कई बार ईरान पर आतंकवाद के समर्थन के लिए प्रतिबंध लगाए हैं।

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भारत पर इसका प्रभाव

भारत, जो कि आतंकवाद से स्वयं दशकों से पीड़ित है, क्या एक ऐसे देश पर भरोसा कैसे कर सकता है जो आतंकवाद को एक “रणनीतिक उपकरण” की तरह इस्तेमाल करता है?

ईरान और पाकिस्तान का गठजोड़

भले ही ईरान और पाकिस्तान के रिश्ते कभी-कभी तनावपूर्ण रहे हों, किंतु दोनों देश अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के कुछ कट्टरपंथी गुटों के मामलों में एक दूसरे के साथ समन्वय करते पाए गए हैं।
पाकिस्तान भारत का प्रत्यक्ष शत्रु है।
अगर ईरान ऐसे देशों के साथ रणनीतिक गठजोड़ बनाए रखता है, तो उसकी मध्यस्थता निष्पक्ष कैसे हो सकती है?

ईरान की आंतरिक स्थिति और विश्वसनीयता संकट

ईरान स्वयं:

  • अपने नागरिकों पर क्रूर दमन करता है।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • धार्मिक अल्पसंख्यकों (यहूदियों, बहाइयों, ईसाइयों) का उत्पीड़न करता है।
  • महिलाओं के अधिकारों का घोर दमन करता है (महसा अमीनी प्रकरण, 2022)।

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ईरान का वैश्विक अलगाव

  • अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई अरब राष्ट्र ईरान को विश्व शांति के लिए खतरा मानते हैं।
  • ईरान पर अंतर्राष्ट्रीय परमाणु समझौते (JCPOA) का उल्लंघन करने के गंभीर आरोप हैं।
  • ईरान का छुपकर परमाणु हथियार विकसित करना वैश्विक स्थिरता के लिए चिंताजनक है।

यदि वैश्विक समुदाय स्वयं ईरान से दूरी बना रहा है, तो भारत क्यों उसके “मध्यस्थता प्रस्ताव” को गंभीरता से ले?

भारत के लिए संभावित जोखिम

यदि भारत ईरान की मध्यस्थता स्वीकार करता है, तो:

  • भारत की वैश्विक प्रतिष्ठा को आघात पहुँच सकता है।
  • भारत के इजराइल, अमेरिका, खाड़ी देशों (UAE, सऊदी अरब) के साथ रणनीतिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
  • भारत के ईरान में निवेश (चाबहार पोर्ट परियोजना) पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि पश्चिमी प्रतिबंध फिर से लागू हो सकते हैं।
  • ईरान किसी भी मध्यस्थता में भारत विरोधी तत्वों के लिए दरवाजे खोल सकता है।

रणनीतिक प्राथमिकताएँ

भारत को स्पष्टता के साथ तीन सिद्धांतों पर टिके रहना चाहिए:

  1. आतंकवाद के समर्थकों से कोई समझौता नहीं।
  2. रणनीतिक स्वायत्तता का पूर्ण संरक्षण।
  3. वैश्विक लोकतांत्रिक शक्तियों के साथ संतुलन और विश्वसनीयता बनाए रखना।

भारत के लिए विकल्प

  • प्रत्यक्ष वार्ता: भारत को अपने मुद्दों का समाधान प्रत्यक्ष बातचीत या बहुपक्षीय मंचों के माध्यम से करना चाहिए।
  • विश्वसनीय साझेदारों का सहयोग: इजराइल, फ्रांस, जापान जैसे देशों के साथ रणनीतिक सहयोग को बढ़ाना चाहिए।
  • क्षेत्रीय नेतृत्व: भारत को दक्षिण एशिया में अपनी नेतृत्व क्षमता को बढ़ाना चाहिए, न कि ईरान जैसे देशों के सहारे चलना चाहिए।

हमारी राय

भारत को ईरान की मध्यस्थता के प्रस्ताव को स्पष्ट और शालीन शब्दों में अस्वीकार कर देना चाहिए।
भारत को अपने राष्ट्रीय हितों, वैश्विक प्रतिष्ठा और लोकतांत्रिक मूल्यों के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहिए।
ईरान जैसे आतंकवाद समर्थक और कट्टरपंथी राष्ट्र के नकली मुखौटे को पहचानना और उससे दूरी बनाए रखना भारत की दीर्घकालिक रणनीतिक नीति का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए।

भारत को अपने आत्मबल, कूटनीतिक कौशल और अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता पर भरोसा करना चाहिए — न कि उन ताकतों पर जो स्वयं अशांति का बीज बोती हैं।

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