22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में अमरनाथ यात्रियों के काफ़िले पर हुए निर्मम आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर दिया। यह “पहलगाम नरसंहार” न केवल एक आतंकवादी कृत्य है, बल्कि यह भारत की राष्ट्रीय अस्मिता, धार्मिक सहिष्णुता और नागरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती है।
लेकिन इस घटना के बाद जिस प्रकार पूरे भारतीय मुस्लिम समाज को कथिततौर पर संदेह और घृणा की दृष्टि से देखा जा रहा है, वह स्वयं में एक गंभीर लोकतांत्रिक और सामाजिक संकट को जन्म देता है।
1. क्या एक समुदाय को सामूहिक दोषी ठहराना न्यायसंगत है?
नहीं। भारतीय संविधान के अनुसार, भारत एक “सेक्युलर लोकतांत्रिक गणराज्य” है, जहाँ अपराध व्यक्ति आधारित होते हैं, सामूहिक पहचान आधारित नहीं।
दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और भारतीय दंड संहिता (IPC) किसी भी अपराध के लिए केवल उसी व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराती है जिसने अपराध किया है — न कि उसके समुदाय, धर्म या जाति को।
2. इतिहास से सबक: सामूहिक दोषारोपण का खतरनाक परिणाम
- 1984 सिख दंगे: इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे सिख समाज को निशाना बनाया गया — नतीजा: लाखों निर्दोषों का विस्थापन और भय।
- गोधरा के बाद गुजरात दंगे: एक रेल डिब्बे में आग लगने के बाद पूरे मुस्लिम समाज को दोषी ठहराया गया — परिणाम: व्यापक सांप्रदायिक हिंसा और आज तक का घाव।
- कश्मीरी पंडितों का पलायन: कुछ आतंकियों के कारण पूरे कश्मीरी मुस्लिम समुदाय पर अविश्वास पनपा, जिससे सांप्रदायिक खाई बढ़ी।
सामूहिक दोषारोपण से आतंकवाद कम नहीं होता, बल्कि और बढ़ता है, क्योंकि यह पीड़ित समुदाय में असुरक्षा और अलगाव की भावना को जन्म देता है।
3. मुस्लिम समाज की मुख्यधारा की भूमिका:
- AIUMB, जमीअत उलमा-ए-हिंद, और दारुल उलूम जैसे बड़े मुस्लिम संगठनों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है।
- सोशल मीडिया पर हजारों मुसलमानों ने पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त की और आतंकियों को इस्लाम का दुश्मन बताया।
- अमरनाथ यात्रा में वर्षों से स्थानीय मुस्लिम लोग यात्रियों की सेवा में लगे रहते हैं — यह कश्मीर की “गंगा-जमुनी तहज़ीब” का प्रमाण है।
4. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता:
आतंकवाद राजनीतिक और वैचारिक उद्देश्यों से प्रेरित होता है, न कि किसी धर्म के वास्तविक सिद्धांतों से।
- आतंकियों की पहचान अलगाववादी और आतंकी संगठनों के एजेंट के रूप में होती है — वे किसी धर्म के प्रतिनिधि नहीं होते।
- संपूर्ण मुस्लिम समाज को आतंकी ठहराना, आतंकियों को वैचारिक खाद देने जैसा है।
5. राष्ट्रीय एकता बनाम विघटनकारी मानसिकता:
- भारत की ताक़त इसकी विविधता में एकता है।
- अगर एक घटना के कारण पूरा समुदाय कटघरे में खड़ा किया जाए, तो यह न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन है, बल्कि देश की एकता और अखंडता के लिए खतरा भी है।
हमारी राय
पहलगाम नरसंहार एक जघन्य आतंकवादी हमला है, जिसकी जितनी भी निंदा की जाए, कम है। लेकिन इस अमानवीय कृत्य के लिए पूरे भारतीय मुस्लिम समाज को दोषी ठहराना न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा पर प्रहार है।
हमले के दोषियों को कानून के कठोरतम प्रावधानों के तहत दंड मिलना चाहिए, लेकिन निर्दोष नागरिकों के खिलाफ सामाजिक या मानसिक हिंसा को भी उतना ही गंभीर अपराध माना जाना चाहिए।
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