मजहबी आतंकवाद : क्या इस मुस्लिम युवक की शौर्य गाथा TRP में फिट नहीं बैठती?

Syed Adil Hussain Shah, the brave Muslim who fought terrorists in Pahalgam 2025.
मजहबी आतंकवाद : क्या इस मुस्लिम युवक की शौर्य गाथा TRP में फिट नहीं बैठती?

22 अप्रैल 2025 की तारीख इतिहास में पहलगाम के नरसंहार के रूप में दर्ज हुई। आतंकवादियों ने टूरिस्टों को बंधक बनाकर इस्लामी कलमा पढ़ने के लिए बाध्य किया और जो न बोल सके उन्हें बेरहमी से मार डाला। परंतु एक नाम जो कहीं पीछे छूट गया — सैयद आदिल हुसैन शाह

कौन थे सैयद आदिल?

29 वर्षीय मुस्लिम युवक जो पेशे से पोनी राइड ऑपरेटर थे। उस दिन उन्होंने पर्यटकों को बचाने के प्रयास में आतंकियों से भिड़ंत की और गोली लगने से शहीद हो गए।

क्या मीडिया और राजनीति दोनों चुप हैं?

  • मीडिया: TRP की दौड़ में इस बहादुरी को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया।
  • राजनीति: कथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने एक भी बयान नहीं दिया।
  • मुस्लिम संगठन: आदिल की कुर्बानी को खुले मंच पर सराहा नहीं गया।

विचारणीय प्रश्न

क्या बहादुरी का मजहब होता है? क्या TRP या वोटबैंक के लिए किसी को नजरअंदाज करना इंसाफ है?

इस घटना की पूरी पड़ताल के लिए पढ़ें पहलगाम हमला और युद्ध की आहट

हमारी राय

सैयद आदिल की कहानी एक आईना है — मीडिया, समाज और राजनीति के लिए। आतंकवाद का कोई मजहब नहीं होता और बहादुरी को TRP से नहीं तोला जाना चाहिए।


स्रोत:

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