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मोदी सरकार की नीतियां कितनी व्यावहारिक हैं? एक संतुलित मूल्यांकन

भारतीय लोकतंत्र विविधता में एकता का अद्भुत उदाहरण है। प्रत्येक सरकार का दायित्व होता है कि वह इस विविधता को सम्मान दे. वह समावेशिता को बढ़ावा दे और सभी नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करे। इसी परिप्रेक्ष्य में यह समीक्षा की जा रही है कि मोदी सरकार की नीतियां कितनी व्यावहारिक हैं.


मोदी सरकार की नीतियां कितनी व्यावहारिक हैं

1. आर्थिक सुधार और अवसंरचना विकास:

मोदी सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर कई बड़े सुधार किए हैं — जैसे GST लागू करना, डिजिटल इंडिया अभियान, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया जैसी योजनाएं। ये पहल व्यावहारिक दृष्टि से भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूत बनाने हेतु केंद्रित रही हैं।

2. सामाजिक योजनाएं और समावेशिता:

जन धन योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं बिना धार्मिक भेदभाव के लागू की गईं, जिनका लाभ अल्पसंख्यक समुदायों समेत सभी वर्गों को मिला।

3. राष्ट्रीय सुरक्षा और कड़े निर्णय:

सर्जिकल स्ट्राइक, धारा 370 हटाना जैसे निर्णयों से सरकार ने एक मजबूत राष्ट्रवादी छवि प्रस्तुत की। हालांकि, इन निर्णयों की व्यावहारिकता पर विभिन्न वर्गों में मतभेद भी हैं।

4. आलोचना और निष्पक्षता का प्रश्न:

कुछ वर्गों का आरोप है कि सरकार कई बार आलोचनाओं को राष्ट्रविरोधी करार देकर लोकतांत्रिक विमर्श को सीमित करती है। यह एक संवेदनशील बिंदु है, जिसका संतुलन आवश्यक है।


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अल्पसंख्यक हितों की बात: अपराध या अधिकार?

1. भारतीय संविधान की दृष्टि से:

अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति, भाषा और संस्थाओं की रक्षा का अधिकार देता है। भारतीय संविधान स्वयं यह निर्देश देता है कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा राज्य का कर्तव्य है। अतः अल्पसंख्यक हितों की बात करना संविधान सम्मत है, न कि अपराध।

2. सामाजिक परिप्रेक्ष्य में स्थिति:

हाल के वर्षों में देखा गया कि कुछ बयान या पहल जब अल्पसंख्यक हितों की बात करती हैं, तो उन्हें राजनीतिक एजेंडा करार देने की प्रवृत्ति बढ़ी है। इससे एक वैचारिक विभाजन उत्पन्न होता है, जो भारतीय सामाजिक ताने-बाने के लिए हानिकारक है।

3. मोदी सरकार का रुख:

मोदी सरकार ने ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ का नारा दिया। सरकारी दावों के अनुसार, योजनाएं धर्मनिरपेक्ष आधार पर लागू की जाती हैं। फिर भी कुछ नीतिगत निर्णयों (जैसे CAA) पर अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर अल्पसंख्यक समुदायों में असुरक्षा की भावना देखी गई है।


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भारतीय एकता: प्राथमिकता का केंद्र

1. लोकतंत्र में संवाद आवश्यक:
भारतीय लोकतंत्र की आत्मा संवाद और असहमति के अधिकार में निहित है। यदि किसी समुदाय के मुद्दों को उठाना रोका जाए या उसे राष्ट्रविरोधी करार दिया जाए, तो यह लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर कर सकता है।

2. नीति निर्माण में संतुलन जरूरी:
नीतियां बनाते समय यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि वे समावेशी हों और हर वर्ग की संवेदनशीलताओं का सम्मान करें। व्यावहारिकता का अर्थ केवल आर्थिक सफलता नहीं है, बल्कि सामाजिक सामंजस्य भी है।


समाधान का मार्ग

क्या मोदी सरकार की नीतियां व्यावहारिक हैं?
उत्तर आंशिक रूप से सकारात्मक है। आर्थिक और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिहाज से मोदी सरकार की नीतियां व्यावहारिक रही हैं, परंतु सामाजिक सौहार्द और विमर्श की स्वतंत्रता के क्षेत्र में और अधिक संतुलन की आवश्यकता है।

भारत की एकता, अखंडता और लोकतंत्र की रक्षा तभी संभव है जब हर नागरिक — चाहे वह बहुसंख्यक हो या अल्पसंख्यक — बिना भय और पक्षपात के अपनी बात रख सके और शासन व्यवस्था उसे समान सम्मान दे।

भारत को यदि वैश्विक नेतृत्व में अग्रणी बनना है तो आर्थिक शक्ति के साथ-साथ सामाजिक समावेशिता और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी अनिवार्य है।


हमारी राय

“मोदी सरकार की कई नीतियां व्यावहारिक हैं, परंतु अल्पसंख्यक हितों की चर्चा को लेकर संवेदनशीलता बनाए रखना लोकतंत्र और भारतीय एकता दोनों के लिए अनिवार्य है।”


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