एक टीवी स्क्रीन जिसमें 'न्यूज़' शब्द के स्थान पर 'एजेंडा' लिखा है, और दर्शक भ्रमित होकर देख रहे हैं।

“राष्ट्रवाद” की आड़ में मीडिया क्या “सच” छिपा रही है?

आज यक्ष प्रश्न है कि “राष्ट्रवाद” की आड़ में मीडिया क्या सच छिपा रही है .

भारतीय मीडिया का परिदृश्य पिछले कुछ वर्षों में नाटकीय रूप से बदल गया है।

जहाँ एक ओर पत्रकारिता का उद्देश्य निष्पक्ष और तथ्यात्मक रिपोर्टिंग होना चाहिए।

वहीं दूसरी ओर, वर्तमान में मीडिया का एक हिस्सा “राष्ट्रवाद” की आड़ में एक “एजेंडा विशेष” को बढ़ावा देता दिखाई दे रहा है।

इस ब्लॉग में हम विश्लेषण करेंगे कि कैसे भारतीय मीडिया जनमत को प्रभावित करने के लिए “राष्ट्रवाद” का उपयोग कर रही है.

और इसके पीछे के कारकों को उजागर करेंगे।


1. मीडिया में राष्ट्रवाद का उदय

भारतीय मीडिया में राष्ट्रवाद का प्रचलन कोई नया नहीं है.

लेकिन हाल के वर्षों में यह प्रवृत्ति और अधिक स्पष्ट हो गई है।

विशेष रूप से 2014 के बाद, जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई.

मीडिया में राष्ट्रवादी विचारधारा का प्रभाव बढ़ता गया।

इस परिवर्तन के पीछे कई कारण हैं, जिनमें राजनीतिक दबाव, TRP की दौड़, और कॉर्पोरेट स्वामित्व शामिल हैं।


2. ‘गोदी मीडिया’ का प्रभाव

  • ‘ग़ोदी मीडिया’ शब्द का उपयोग उन मीडिया हाउसों के लिए किया जाता है जो सरकार के पक्ष में रिपोर्टिंग करते हैं,और आलोचनात्मक पत्रकारिता से बचते हैं।
  • इस प्रकार की पत्रकारिता में, राष्ट्रवाद का उपयोग एक उपकरण के रूप में किया जाता है.
  • ताकि सरकार की नीतियों और कार्यों की आलोचना को दबाया जा सके।
  • इस प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप, जनता को एकतरफा और पक्षपातपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है, जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।

3. राष्ट्रवाद के नाम पर अल्पसंख्यकों का चित्रण

  • मीडिया में “राष्ट्रवाद” के बढ़ते प्रभाव के कारण, एक समुदाय विशेष को नकारात्मक रूप में प्रस्तुत किया जाता है।
  • इस प्रकार की रिपोर्टिंग से समाज में ध्रुवीकरण बढ़ता है और सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न होता है।
  • उदाहरण-‘लव जिहाद’ और ‘घर वापसी’ जैसे मुद्दों को मीडिया में प्रमुखता से उठाया गया.
  • जिससे अल्पसंख्यकों विशेषतः मुस्लिम समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने में मदद मिली।

4. स्वतंत्र मीडिया पर दबाव

  • स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता करने वाले मीडिया हाउसों और पत्रकारों पर सरकार और सत्ताधारी दलों द्वारा दबाव डाला जाता है।
  • उदाहरण के लिए, NDTV जैसे चैनलों पर टैक्स छापे और कानूनी कार्रवाइयाँ की गईं, जिससे उनकी स्वतंत्रता पर असर पड़ा।
  • इसके अलावा, कई पत्रकारों को सोशल मीडिया पर ट्रोलिंग और धमकियों का सामना करना पड़ता है, जिससे वे स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग करने से हिचकते हैं।

5. हमारी राय

भारतीय मीडिया में “राष्ट्रवाद” का बढ़ता प्रभाव चिंता का विषय है। जब मीडिया निष्पक्षता छोड़कर एक विशेष एजेंडा को बढ़ावा देने लगती है, तो यह लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाती है। जनता को सही और संतुलित जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है, और इसके लिए स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता आवश्यक है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी को समझे और सच्चाई को सामने लाने में कोई कसर न छोड़े।

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