इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद : निष्पक्ष और तथ्यात्मक विश्लेषण

islamic kattarpanth aur atankvad

आज पूरी दुनिया में सबसे अधिक चर्चित विषय है – इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद में क्या संबंध है. पहलगाम घटना के पश्चात तो पूरी दुनिया में इस विषय को वैश्विक स्तर पर चर्चा में शामिल किया गया है.

लेकिन क्या यह सच है?
क्या इस्लाम सच में आतंकवाद सिखाता है?

एक बम फटता है।
खबरें चलती हैं — “आरोपी का नाम अब्दुल था…”
और बस — अदालत से पहले ही फैसला सुना दिया जाता है।
“देखा? फिर वही… मुसलमान।”

पूरी दुनिया में “इस्लामिक कट्टरपंथ” और “आतंकवाद” को एक ही वाक्य में जोड़ा जा रहा है।
क्या कुरान किसी “जिहादी ट्रेनिंग मैनुअल” का नाम है?
क्या हर नमाज़ पढ़ने वाला एक हमलावर है?
क्या मस्जिदें/मदरसे आतंक के अड्डे हैं ?

1. कुरान और हिंसा: क्या सच में आतंकवाद का स्रोत है?

कुरान की सबसे अधिक उद्धृत आयतें जो कथित रूप से आतंक को प्रेरित करती हैं — अक्सर संदर्भ से काट कर पेश की जाती हैं।
उदाहरण:
“काफिरों को जहाँ पाओ, मार डालो…” (सूरह 9:5)
इस आयत को एक पूरे युद्धकालीन परिप्रेक्ष्य से अलग करके प्रस्तुत किया जाता है।

असल संदर्भ:
यह आदेश मक्का के एक विशेष युद्ध के दौरान उन लोगों के लिए था, जिन्होंने पहले शांति-संधि तोड़ी और मुस्लिमों पर आक्रमण किया।

कुरान में 100 से अधिक बार “रहमत”, “शांति”, “क्षमा” और “धैर्य” जैसे शब्द आए हैं —
“एक निर्दोष की हत्या समस्त मानवता की हत्या के बराबर है।” (सूरह अल-माइदा 5:32)


2. हदीस और जिहाद की ऐतिहासिक व्याख्या

जिहाद” का अर्थ है — संघर्ष, लेकिन इसका पहला और सर्वोच्च अर्थ है:

अपने अंदर की बुराइयों से लड़ना।

  • पैग़म्बर मोहम्मद ने कहा: “सबसे बड़ा जिहाद है — अपने नफ्स (अहंकार) पर नियंत्रण।”
  • “तलवार का जिहाद” केवल आत्मरक्षा या सामूहिक उत्पीड़न के विरुद्ध था, न कि किसी भी ‘काफिर’ को मारने के लिए।

जिहाद की 3 श्रेणियाँ होती हैं:

  1. नफ्स के खिलाफ संघर्ष (आत्मिक शुद्धि)
  2. विचारधारा और संवाद द्वारा संघर्ष (कलम का जिहाद)
  3. आत्मरक्षा हेतु युद्ध (हथियार का जिहाद)लेकिन यह भी केवल उत्तरदायी और सीमित परिस्थिति में।

3. इस्लाम बनाम इस्लामिक कट्टरपंथ: एक सच्चाई दो छवियाँ

इस्लाम का मूल स्वरूप: शांति, समानता, करुणा
कट्टरपंथी संस्करण: शक्ति, भय, और राजनीतिक लाभ

  • वॉहाबिज़्म (18वीं सदी) ने इस्लाम को न्यायप्रिय धर्म से सत्तालोलुप सिद्धांत में बदल दिया।
  • तालिबान, अलकायदा, ISIS — इनका इस्लाम के साथ उतना ही संबंध है जितना गोडसे का भगवद्गीता से।
  • वहीं दूसरी ओर सूफ़ी इस्लाम में ध्यान, प्रेम, और मानवता को सर्वोपरि रखा गया है।

“आतंकी गुट” इस्लाम धर्म की नहीं, राजनीतिक धर्म की पैदाइश हैं।


4. वैश्विक राजनीति और आतंक का कारोबार

  • 1980s: अफगानिस्तान में अमेरिका ने तालिबान और मुजाहिदीन को प्रशिक्षित किया।
  • ISIS की जड़ें इराक पर अमेरिकी हमले में हैं।
  • फिलिस्तीन, सीरिया, यमन — सभी जगह राजनीतिक टकराव को धर्म की शक्ल दी गई।

भारत का मुसलमान आतंक से अधिक “ आतंकी संदेह” का शिकार है।
वह “आतंक” में नहीं, “संविधान” में विश्वास करता है।


6. आतंक का कोई धर्म नहीं होता

इस्लाम आतंकवाद नहीं सिखाता।
लेकिन कुछ लोग इस्लाम को आतंक का चोला पहना देते हैं — अपने एजेंडे के लिए।

आतंक का धर्म नहीं होता।
बम मस्जिद में भी फटता है, चर्च में भी, मंदिर में भी।
सवाल यह नहीं कि कौन मारा गया — सवाल यह है कि क्यों मारा गया, और किसने भड़काया?

धर्म को दोष मत दो — सोच को बदलो।
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